المشاركات

एशिया के सबसे बड़े टीबी अस्पताल से फ़रार हो रहे मरीज़! | Pavitra India

https://ift.tt/4g7ARVK

पिछले पाँच वर्षों से अस्पताल में अकेली ज़िन्दगी गुज़र रही तबस्सुम गाँव से शहर लौटी, तो उसने ख़ुद को मुंबई उपनगर के मानख़ुर्द इलाक़े की एक झोंपड़पट्टी में पाया। 8×10 की झोंपड़ी और रहने वाले दज़र्न भर लोग। बग़ल से गंदा नाला, बजबजाती गंदगी, बदबू और गंदगी जलाने वाली भट्ठी से निकलती ख़तरनाक गैस आदि के बीच उसे बीमारी ने जकड़ लिया। उस इलाक़े में टीबी के मरीज़ों में उसका नाम भी शामिल हो गया। पहले स्थानीय महानगरपालिका अस्पताल में उसका इलाज चला। फिर टीबी के सबसे बड़े अस्पताल शिवडी में आना पड़ा। शारीरिक अक्षमता के चलते वह माँ नहीं बन पायी, तो परिवार ने उसे बेकार मान लिया। जब वह अपना पूरा इलाज कराकर घर पहुँची थी, तो उसे जली-कटी बातों के साथ-साथ लात-घूँसे भी खाने पड़ते थे। पति ने दूसरा निकाह कर लिया था। शौहर की नयी बेगम चाहती थी कि तबस्सुम कभी घर न लौटे। फिर वह यहीं लौट आयी, उसके बाद यही उसका ठिकाना बन गया।

एशिया के सबसे बड़े टीबी हॉस्पिटल में ऐसी कई तबस्सुम हैं, जिन्हें अपने घर लौटने की इजाज़त नहीं है। कोई किसी की माँ है, तो कोई किसी का बाप। कोई भाई, तो कोई बेटा। कोई किसी का सगा चाचा है, तो कोई दूर का रिश्तेदार। क्षय (टीबी) के डर से पारिवारिक रिश्तों का क्षय (नाश) किस तरह होता है, यह यहाँ दिखता है। झंटू (बदला हुआ नाम) को उसके दूर के रिश्तेदार पश्चिम बंगाल से ठाणे लाये थे। उसका कोई नहीं था। दूर के रिश्तेदार ठीक-ठाक रसूख़दार थे। उनके घर पर वह घरेलू नौकर-सा बन गया। उसके लगातार बीमार रहने से परिवार की मुखिया को शक हुआ। उसके निजी डॉक्टर ने जाँच के बाद बताया कि झंटू को टीबी है; तो बजाय इलाज कराने के, उसे घर छोड़ने का अल्टीमेटम दे दिया गया। इंसानियत के नाते कोई उसे इस अस्पताल में ले आया। मिली जानकारी के मुताबिक, इस अस्पताल में क़रीब 25 मरीज़ ऐसे हैं, जो पिछले पाँच वर्षों से घर गये ही नहीं। इनमें पाँच महिलाएँ हैं। हालाँकि उनके लिए कई संस्थानों से मदद माँगी गयी; लेकिन इनके एक्स-रे में पुराने टीबी का डॉट दिखायी देने के चलते सस्थाएँ किसी तरह का रिस्क नहीं लेना चाहतीं। मुंबई महानगरपालिका (बीएमसी) के इस टीबी अस्पताल में इन मरीज़ों के अलावा ऐसे मरीज़ों की भी तादाद काफ़ी बड़ी है, जो अधूरा इलाज छोड़कर फ़रार हो जाते हैं और कुछ डामा (जबरदस्ती छुट्टी) लेकर अस्पताल से निकल गये।

बीएमसी के अधिकारियों के मुताबिक, फ़रार होने वाले मरीज़ लगभग हमेशा ग़ैर-संक्रामक होते हैं और अस्पताल में लंबे समय तक रहने के कारण भाग जाते हैं। शहर में 2023 में 63,575 टीबी के मामले दर्ज किये गये थे, जो 2022 के 65,747 मामलों के मुक़ाबले थोड़े-से ही कम हैं। इन रोगियों में से 2023 में 4,793 और 2022 में 5,698 में टीबी के ड्रग रेसिस्टेंट मरीज़ थे, जिनके लिए लगभग 18 महीने के इलाज और लम्बे समय तक अस्पताल में रहने की आवश्यकता होती थी, और हर मरीज़ को होती भी है।

अस्पताल में लंबे समय तक इलाज, परिवार की तरफ़ से असंवेदनशीलता और सामाजिक टैबू जैसी कई वजह हैं, जिनके चलते कई मरीज़ बेचैन हो जाते हैं और सुरक्षा गार्डों को चकमा देकर अस्पताल से भाग जाते हैं। मरीज़ों के ऐसा करने की प्रमुख वजह उनका अकेलापन है। दबी ज़ुबान में बताया जाता है कि अस्पताल के कुछ कर्मचारियों द्वारा मरीज़ों के साथ दुर्व्यवहार भी इसका एक कारण बनता है! 2021 से इस साल मई के बीच भागे 83 मरीज़ों में 78 पुरुष और पाँच महिलाएँ थीं। बीएमसी के जन स्वास्थ्य विभाग से आरटीआई के तहत जानकारी हासिल करने वाले चेतन कोठारी ने बताते हैं- ‘अस्पताल से भागने वाले मरीज़ों की संख्या हर साल बढ़ रही है।’

बक़ौल बीएमसी कार्यकारी स्वास्थ्य अधिकारी डॉ. दक्षा शाह- ‘ये मरीज़ ग़ैर-संक्रामक हैं। कभी-कभी मरीज़ों को निगरानी के लिए कुछ हफ़्ते और रुकने के लिए कहा जाता है। लेकिन वे ऐसा नहीं करना चाहते और चले जाना चाहते हैं। ऐसे मरीज़ों को चिकित्सा सलाह के विरुद्ध छुट्टी (डामा) के रूप में चिह्नित किया जाता है।’

जो मरीज़ मानसिक रूप से ज़्यादा परेशान होते हैं, उनकी काउंसलिंग के लिए काउंसलर्स और साइकैटस्ट भी अस्पताल में हैं, जो उन्हें इस मानसिकता से निकलने में मदद करते हैं। 2021 से इस साल मई के बीच लगभग 1,574 मरीज़ों ने डामा की माँग की है। बीएमसी अधिकारियों ने कहा कि उनके लापता होने पर पुलिस में शिकायत दर्ज की गयी है। कई बार बीएमसी के स्वास्थ्य कर्मचारी मरीज़ की तलाश के लिए उसके अंतिम ज्ञात पते पर जाते हैं। संयोग से अस्पताल ने 2021 से आत्महत्या का मामला दर्ज नहीं किया है।

दरमियान सिंह बिष्ट पेशे से वकील हैं और इन विषयों में भी उनकी रुचि है। वह कहते हैं- ‘सरकार टीबी से लड़ने पर कितने भी पैसे ख़र्च करे, अगर मरीज़ इलाज पूरा नहीं करता है, तो सब बेकार है। अधूरे इलाज से न केवल उनमें दवा प्रतिरोधी टीबी विकसित होने का ख़तरा बढ़ जाता है, बल्कि यदि मरीज़ टीबी उपचार और डॉक्टर के निर्देशों का पालन नहीं करते हैं, तो टीबी मरीज़ों के क़रीबी लोगों और अन्य लोगों में भी संक्रमण फैल सकता है। मरीज़ों के फ़रार होने की प्रमुख वजह उनका अकेलापन है।

एक अक्स यह भी – सूत्रों के मुताबिक, कई मरीज़ ऐसे हैं, जो ठीक होने के बाद भी घर नहीं लौटना चाहते हैं। क्योंकि उनके परिजन भी अस्पताल में ही आकर रह रहे हैं। अस्पताल मरीज़ों को वार्ड में, जबकि अन्नपूर्णा नामक संस्था उनके परिजनों को बाहर भोजन का प्रबंध करते हैं। हालाँकि कई मरीज़ों का अपना निजी आवास भी है, जिसे वे किराये पर चढ़ाकर पैसा कमा रहे हैं। ऐसे बहुत-से मरीज़ अस्पताल में ही बस गये हैं। हालाँकि इस तरह का दावा करने वाले व्यक्ति के पास इस तरह के लोगों की जानकारी तो है; लेकिन उसने पुख़्ता जानकारी देने से इनकार कर दिया।

-------------------------------

 ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज अपडेट के लिए हमें फेसबुक पर लाइक करें या ट्विटर पर फॉलो करें। Pavitra India पर विस्तार से पढ़ें मनोरंजन की और अन्य ताजा-तरीन खबरें 

Facebook | Twitter | Instragram | YouTube

-----------------------------------------------

.  .  .

About the Author

Pavitra India (पवित्र इंडिया) Hindi News Samachar - Find all Hindi News and Samachar, News in Hindi, Hindi News Headlines and Daily Breaking Hindi News Today and Update From newspavitraindia.blogspit.com Pavitra India news is a Professional news Pla…
Cookie Consent
We serve cookies on this site to analyze traffic, remember your preferences, and optimize your experience.
Oops!
It seems there is something wrong with your internet connection. Please connect to the internet and start browsing again.
AdBlock Detected!
We have detected that you are using adblocking plugin in your browser.
The revenue we earn by the advertisements is used to manage this website, we request you to whitelist our website in your adblocking plugin.
Site is Blocked
Sorry! This site is not available in your country.