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संपूर्ण क्रांति अब नारा है भावी इतिहास हमारा है. | Pavitra India

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पांच जून 1974 पटना के गांधी मैदान की सभा में जयप्रकाश नारायण ने संपूर्ण क्रांति की घोषणा को आज 51 वर्ष हो रहे हैं .
” संपूर्ण क्रांति अब नारा है, भावी इतिहास हमारा है “. इस नारे को आज 51 साल पूरे हो रहे हैं. मै इस आंदोलन मे उम्र के इक्कीस साल का, यानी उस समय के अनुसार भारत मे मतदान करने की उम्र का. और मै एक संवेदनशील नागरिक होने के नाते इस आंदोलन मे तन- मन- धन से शामिल था . था शब्द दोबारा इसलिए दोहरा रहा हूँ कि हमने संपूर्ण क्रांति के कितने कदम की यात्रा की है ? और आज 51 साल पूरे होने पर, मुझे लगता है, कि सिर्फ एक कर्मकांड के तौरपर जैसे हम हमारे त्योहार, दिपावली, दशहरा, ईद, ख्रिसमस या किसी भी अन्य धार्मिक त्योहारों को जैसे, मनाया जा रहा है. लेकिन संपूर्ण क्रांति का कौन-सा पहलू ? कौनसे पैमानों को हमने अबतक पूरा किया ? या उसके लिए कुछ कोशिश की है ? इसका मूल्यांकन करने की आवश्यकता है.


जयप्रकाश नारायण की ‘संपूर्ण क्रांति नामकी’ 104 पन्ने की पुस्तिका के, प्रकरण चार, पन्ना नंबर 58 मे, संपूर्ण क्रांति के विभिन्न पहलुओं के अनुसार- “मै इस आंदोलन को संपूर्ण क्रांति के रूप मे देखता हूँ कि समाज मे अमुलाग्र परिवर्तन हो ; सामाजिक,आर्थिक,राजनीतिक,सांस्कृतिक, शैक्षणिक, नैतिक परिवर्तन एक नया समाज इसमेंसे निकले, जो – जो समाज के आज के समाज से बिलकुल भिन्न हो, उसमे कम-से-कम बुराइयाँ हो. हम ऐसा भारत चाहते, जिसमें सब सुखी हों. और अमीर-गरीब का जो आकाश पाताल का भेद है,वह न रहे.या कम-से-कम हो. समाज की बुराइयाँ दूर हो, इन्साफ हो जो आर्थिक परिवर्तन हो, उसका फल यह हो कि, सबसे नीचे के लोग है, जो सबसे गरीब है, चाहे वे खेतिहर मजदूर हो, भूमिहीन हो-मुसलमान, हरिजन, आदिवासी, ये सबसे नीचे है, इनको पहले उठाना चाहिए यह 1974 की बात है.
वर्षों से भारत की आजादी के बाद, जो कुछ हुआ सब कुछ उल्टा हुआ, गरीबी बढती गयी. और उसके साथ ही अमीरी भी. और दोनों का फर्क भी बहुत बढता गया, भूमि सुधार के कानून भी पास हुए, परंतु भूमि-हिनता बढती ही गयी, घटी नहीं, पहले जितने परसेंटेज में भूमिहीन थे, आज उससे अधिक है.


यह जो क्रांति आरंभ हुई है, अगर वह सफल होती है, तो यह सब उसमें से निकलेगा. समाज की बुराइयाँ, छुआ-छूत, जात-पात के झगड़े, सांप्रदायिक झगड़े, सब समाप्त होने चाहिए. हम सब हिंदूस्थानी है, हम इन्सान है, यह विचार फैलना चाहिये. सबके दिल में इसकी जगह होनी चाहिए. हमारे कार्य मे, हमारे जीवन मे यह प्रत्यक्ष होना चाहिए, केवल जुबान पर नहीं, जैसा आज हो रहा है.
और इसी तरह, चूंकि इसमें छात्र है, मैंने अक्सर इनसे कहा है कि, हिंदू-समाज मे, मुस्लिम-समाज मे भी शायद किसी रूप में हो, जो यह तिलक-दहेज की प्रथा है, अगर यह आंदोलन सफल हुआ तो यह चलन भी बंद होगा. इस तरह मैं दूर तक देखता हूँ, जो सर्वोदय की मंजिल है, जो समाजवाद की मंजिल या साम्यवाद की मंजिल है– सब एक तरह की बात करते हैं, तरीके, रास्ते अलग-अलग है. और हो सकते है, मै इस आंदोलन को वहां ले जाना चाहता हूँ, यह क्रांति है, मित्रों संपूर्ण क्रांति. ”
साथीयो यह जयप्रकाश नारायण के, सर्वसेवा संघ प्रकाशन, राजघाट, वाराणसी के,जनवरी 1975 के 104 पृष्ठ की पुस्तिका का, सत्तावन और अठ्ठावन पन्नो पर, संपूर्ण क्रांति के ‘विभिन्न पहलु’ नाम का अध्याय के कुछ विचार है . आगे जेपिजीने इन सभी पहलुओं पर विस्तार से चर्चा की है. और हम संपूर्ण क्रांति के सिपाही इसे रटकर, 1977 के मई मे महाराष्ट्र के अमरावती में एक सप्ताह का शिबिर करने के बाद विधिवत् महाराष्ट्र संघर्ष वाहिनी की स्थापना करके, मुखतः महाराष्ट्र में छात्र युवा संघर्ष वाहिनी की जगह-जगह स्थापना के लिए, निकल पड़े. मैंने खानदेश, पस्चिम महाराष्ट्र, कोंकण और महाराष्ट्र के सिमावर्ति, कर्नाटक के बेलगाँव, निपाणी, इत्यादि महाराष्ट्र से सटे हुए हिस्सोमे, अपने ढंग से प्रचार-प्रसार के लिए अपने आप को झोंक दिया था. और हम सीधे जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति के सिपाही होने के नाते अखबरोमे आज डॉ. सुरेश खैरनार रत्नागिरी में है. और संपूर्ण क्रांति पर मौलिक मार्गदर्शन करेंगे. इस तरह के लगभग हर जगह खबरे छपती थी. और हमारे श्रोताओं मे बाकायदा विधानसभा के विधायकों से लेकर हर जगह के बौद्धिक तबके की उपस्थिति होती थी. पुणे के ‘गोखले इन्स्टीट्यूट’ जैसे प्रतिष्ठा प्राप्त संस्थान में भी इस विषय पर बोलने का मौका मिला था.
इस तरह के जीवन के सबसे बेहतरीन समय मैंने दिया है. और संपूर्ण क्रांति की सपनों की दुनिया बनाने हेतु कोशिश की है.और इसमें हमें उस समय की सत्ताधारी दल जनता पार्टी के विधायक, सांसद और अन्य पदाधिकारियों का काफी सहयोग मिला है. लेकिन आज संपूर्ण क्रांति के घोषणा के, 51 साल पूरे होने पर पीछे मुड़कर देखने के बाद लगता है, कि वह एक तात्कालिक सपना था. और उस सपने में मेरे जैसे शेकडो युवक-युवतियां शामिल थी. उसमे से कोई राजनीतिक दल के दामन थाम लिये. तो संसद सदस्यों से विधायक तथा मुख्यमंत्री और कुछ मंत्रियों के पद पर चले गये.
और जिन्हें प्रोजेक्ट बनाने की कला आती थी. वह एन जी ओ बन गये, और जिन्होंने जेपिके आवाहन पर शिक्षा में क्रांति के लिए शिक्षा अधुरी छोड़ दी थी, उन्होंने उसे पूरी करके कोई पत्रकार, कोई वकील, कोई शिक्षा के क्षेत्र में, और अन्य नौकरियों मे चले गये. जिसे मैं अपनी समझ के अनुसार संपूर्ण क्रांति की एक स्रि – पुरुष समानता की व्याख्या के अनुसार ‘हाऊस हज्बंड’ की भूमिका निभाने की कोशिश कर रहा हूँ.


लेकिन जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से निकल कर, राजनीति मे जाने वाले लोगों ने, संपूर्ण क्रांति की ऐसी की तैसी करने मे कोई कोर-कसर नहीं छोड़ी. और उत्तर भारत के काफी बडे हिस्सेपर 1977 से लगातार, अलट-पलट कर जेपिके आंदोलन को भुनाने वाले ही लोग सत्ता मे रहे हैं. और इन्होंने संपूर्ण क्रांति के कौनसा पहलू को लेकर क्या काम किया है ? यह एक अकादमिक संशोधन का विषय है. और समाजशास्त्र या राजनीति शास्त्र के विद्यार्थीयों ने इस विषय पर जरूर संशोधन करना चाहिए.
लेकिन सबसे संगीन बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ परिवार जेपिके इस आंदोलन मे शामिल होकर, साँप जैसे नई चमडी लेकर चमकता है, वैसा ही उसने गाँधीजीकी हत्या के बाद, अपने चेहरे को नया मुखौटा पहने के बाद ही अपने शताब्दी के वर्ष मे भारत की राजनीति मे आजका मुकाम हासिल किया हैं. और संपूर्ण क्रांति तो दूर की बात है. संविधान से सेक्युलरिज्म और सोशलिस्ट शब्दों को हटाकर वर्तमान सरकार ने अपनी पूंजीवाद के हिमायती होने की बात डंके के चोटपर दिखा दिया है.
और इसिलिये मुक्त अर्थव्यवस्था, जिसमें गरीब और गरीब हो रहा है. और अमीरो को ( उसमे भी विशेष रूप से, गौतम अदानी का एंपायर ) वर्तमान सरकार उसकी हर तरह से मदद करता हुआ सभी पर्यावरण संरक्षण के सभी कानूनों की अनदेखी करते हूऐ, झोपडपट्टीयों से लेकर हवाई अड्डे, रेल्वे, बंदरगाह, रक्षा के क्षेत्र सरकार देश की सार्वजनीक संपत्ति, खनिज और जल, जंगल, जमीन का वारे-न्यारे कर रहीं हैं.
और सभी सरकारी उद्योगों को वर्तमान सरकार औने-पौने दामौमे प्रायवेट मास्टर्स को देना जारी है. जिसमें, रेल्वे, सडकपरिवहन, हवाई यातायात, जहाजरानी, विभिन्न सरकारी उद्योग जिसमें हमारे रक्षा जैसे देश की सुरक्षा को दांव पर लगाने से लेकर, शिक्षा तथा स्वास्थ्य जैसे महत्वपूर्ण उपक्रमों को भी प्रायवेट मास्टर्स को सौपने के लिए सर्कार, खुद ही स्कूलों की फिस बढाकर और सरकारी अस्पतालों की खस्ता हालत बनाने का ताजा उदाहरण नांदेड़ के सरकारी अस्पताल में भर्ती पेशंट की मौतें इसका जिता – जागता उदाहरण है.


और उनके लिए कृषि कानूनों को बदलने से लेकर, सीलिंग कानून, उद्योगपतियों की सुविधा के लिए, मजदूरों ने शेकडो सालो की लड़ाई के बाद हासिल किये हुए कानूनों को बदलने की सरकार ने किए हुए बदलाव पूंजीपतियों के हित में , शिक्षा के क्षेत्र से लेकर आरोग्य व्यवस्था जो एक कल्याणकारी सरकारों का दायित्व होता है, उससे सरकार अपना पल्ला झाड़ रही है.
और सबसे संगीन बात कोरोनाके जैसी महामारी मे लाखो लोगों की जाने जाने के बाद, सरकार की स्वास्थ्य सेवा उजागर हो चुकी है. और सरकार अपनी जिम्मेदारी नहीं मान रही. सब कुछ प्रायवेट स्वास्थ्य टायकूनो के हवाले कर दिया है. शिक्षा के क्षेत्र में भी शिक्षासम्राटो के हवाले शिक्षा सौपी जा रही है. इसलिए बची खुची सरकारी स्कूल, काॅलेज और विश्वविद्यालयों की फीस बेतहाशा बढानेका एकमात्र उद्देश्य दलित, आदिवासी, पिछडी और गरीबों के लिए वर्तमान शिक्षा व्यवस्था में कोई गुंजाइश नहीं रहे.
और सबसे संगीन बात, जयप्रकाश नारायण के आंदोलन से नया मुखौटा पहने के बाद ही राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसकी राजनीतिक ईकाई भाजपा के द्वारा शुरू किया गया, ‘राम मंदिर-बाबरी मस्जिद’ के आंदोलन से अपनी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए, भागलपुर का दंगा 24 अक्तूबर 1989 , गुजरात का दंगा 27,फरवरी 2002 , मुंबई तथा देशके विभिन्न हिस्सों में शेकडो जगहों पर 6 दिसंबर 1992 के दिन आयोध्या में बाबरी विध्वंस के बाद कितने लोगों की जिंदगी दांव पर लगी ? और इस वजह से भारत में स्वतंत्रता के बाद पहली बार सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करते हूऐ अपने लिए चुनाव प्रचार के लिए हमारी देश की सेना के जवानों की जान के साथ खिलवाड़ तथाकथित सर्जिकल स्ट्राइक तथा पुलवामा जैसे घटनाओं को भी अपने चुनाव प्रचार के लिए भूनाना डेढ महिना पहले का पहलगाम हमले की घटना कैसे हुईं ? क्योंकि इसी सरकारने दावा किया कि 370 हटाने के बाद आतंकवादीयों की कमर तोड़ दी गई है इसलिए कश्मीर में अमन चैन आ गया है . लेकिन पुलवामा और पहलगाम की घटनाओं ने इस दावे की पोल खोल दी है .कश्मीर में हमारा सेना तथा अन्य सुरक्षा बलों की इतने बड़े पैमाने पर तैनाती होने के बाद भी यह हमला कैसे हुआ ? आज डेढ महिना हो गया लेकिन अभी तक कोई जानकारी नहीं है. और ऑपरेशन सिंदूर जैसे कारवाई की .लेकिन अधिकृत रुप से सरकार की तरफ से सही जानकारी क्यों नहीं दे रहे हैं ? हमारे कितने विमान नष्ट हुए हैं ? जिसके लिए सौ से अधिक देशों में सांसदों के दलों को भेजनेका कष्ट करना पडा. लेकिन विरोधी दलों की संसद का विशेष अधिवेशन बुलाने की मांग क्यों नही मानी जा रही है ?


जबकि पाकिस्तान के उपर भारत मे आतंकवादीयों के द्वारा 26/11 से लेकर संसद पर हमला तथा पंजाब और कश्मीर में घटित आतंकवादीयों की हरकतों को बताने के लिए ही सौ से अधिक देशों में हमारे संसद के सदस्यों के संवाद यात्रा के तुरंत बाद ही, यूएनओ की सुरक्षा परिषद की आतंकवाद विरोधी कमिटी के चूनाव में पाकिस्तान के सामने भारत को हार का सामना करना पड़ रहा हैं. इसका क्या मतलब है ?
और वर्तमान मे तथाकथित नागरिक संशोधन बिल, लवजेहाद, हिजाब, गोहत्या जैसे मुद्दों के माध्यम से मॉबलिंचिग करके सौ से अधिक संख्या में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को मारने और कश्मीर, लक्षद्वीप जैसे मुस्लिम बहुलतावादी क्षेत्रों में हिंदुत्व की राजनीति लादने के काम करने की कृति, से संपूर्ण विश्व में भारत की छवि बिगाडी है. गुजरात दंगे के बाद तत्कालीन प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी जी ने कहा था कि मैं विदेशों में क्या मुंह लेकर जाऊँगा ? क्योंकि इस तरह भारत में अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के उपर हमले होने से हमारी इज्जत नहीं रहेगी. लेकिन अटलजी के नाम लेने वाले दलने उनके इस प्रतिक्रिया से सिखने की जगह संपूर्ण राजनीति कौ सिर्फ और सिर्फ सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के इर्द – गिर्द लाकर खडी कर दी है .
और जयप्रकाश नारायण के संपूर्ण क्रांति की व्याख्या का माखौल उडाने की कृति एकसे बढकर एक करते जा रहे हैं.और जयप्रकाश नारायण के बनाये हुए पीयूसीएल, सीएफडी, संघर्ष वाहिनी के साथी सालाना जलसे, मित्र-मिलन और साल- छ महीने मे एखादा निवेदन तैयार करने के अलावा कोई ठोस कदम नहीं उठा रहे हैं .
मुझे हमारे संघर्ष वाहिनी के 1977 – 80 के दिन याद आ रहे है. संघर्ष वाहिनी की राष्ट्रीय समिति की बैठकों मे युगांडा के तत्कालीन तानाशाह, इदी अमिन या दक्षिणी अफ्रीका की वर्णभेदी सरकारो को भी, धमकानेके प्रस्ताव पारित करने के लिए, एक-एक शब्द के लिए, रात-रात चर्चा करते थे. फिर बडेही मुश्किल से वह प्रस्ताव पारित होता था. लेकिन उसकी काॅपी दिल्ली स्थित उनके एंबेसियो तक नहीं पहुँचा पाते थे. और इदी अमिन और बोथा तो बहुत ही दूर की बात है. लेकिन संपूर्ण क्रांति के लिए जिन लोकसमितियो का गठन करने के लिए जयप्रकाश नारायण जी ने कहा था. उन लोकसमितियो का नाम लेकर कुछ लोग एनजीओ बना कर उनके नाम का इस्तेमाल कर रहे हैं. लेकिन उसके परिणाम स्वरूप संपूर्ण क्रांति कहा है ? यह सवाल संपूर्ण क्रांति दिवस के अवसर पर बार – बार मेरे मन में आ रहा है.

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