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रवि राय की याद में | Pavitra India

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सभी साथियों को क्रांतिकारी अभिवादन,हमारे देश की पूरी चुनाव प्रक्रिया को ही हायजॅक करने के परिप्रेक्ष्य में पूर्व लोकसभा अध्यक्ष रवि राय (26 नवंबर 1926 – 6 मार्च 2017 )जी की जन्मशताब्दी समारोह की शुरुआत 26 नवंबर से विधिवत शुरू होने के उपलक्ष्य में विनम्र अभिवादन.

मेरे रवि राय जी के साथ के संबंध उनके जीवन के आखिरी दौर में जब उन्होंने भारतीय संसदीय क्षेत्र में चल रहे सांप्रदायिक ध्रुवीकरण की राजनीति में हस्ताक्षेप करने के उध्देश से ‘लोकशक्ति अभियान’ की शुरुआत की थी, उस दौरान ज्यादा नजदीकी से मेरा संबध आया था. और उस समय उनके सबसे चिंता और चिंतनीय विषय हमारे संसदीय जनतंत्र को सांप्रदायिक तथा अपराधिक तत्वो के द्वारा एक षड्यंत्र के तहत हायजॅक करने के चल रहे प्रयासों के खिलाफ लोगों को जागरूक करने के लिए ‘लोकशक्ति अभियान’ को आगे बढ़ाने का लक्ष्य मैने देखा है. जो मेरे भी जीवन का सबसे प्रमुख लक्ष्य अक्तुबर 1989 के भागलपुर दंगे की विनाशकारीता देखने के बाद बन गया है. और मैंने कहा था कि “आने वाले पचास वर्ष की देश की संसदीय राजनीति का केंद्र बिंदु सिर्फ सांप्रदायिकता के इर्द-गिर्द ही रहेगा”. मेरे इस आकलन से सहमत दिखाई देने वाले लोगों मे रवि राय जी का भी समावेश रहा है. इस सवाल पर संयुक्त मोर्चा बनाने की आज सबसे अधिक आवश्यकता है. और आज हम उनके जन्मशताब्दी के उपलक्ष्य में आने वाले साल-भर मे विभिन्न कार्यक्रमों की शुरुआत करने जा रहे हैं. मेरा सभी साथियों से विनम्र निवेदन है कि उन्होंने अपने जीवन के सबसे अधिक समय हमारे संविधान और संसदीय लोकतंत्र पर चल रहे वर्तमान संकट के निवारण के लिए ही ज्यादा से ज्यादा कोशिस की थी. इसलिए उनके जन्मशताब्दी के वर्ष मे उनके प्रति सही श्रध्दांजलि, उन्होंने छोडे हूऐ काम को आगे बढ़ाने के लिए कृतसंकल्प होकर काम करने के लिए शुरुआत करना ही हो सकता है.


रवि राय जी का जन्म 26 नवंबर 1926 भानगढ गाँव, पुरी जिला (अब खुर्दा जो भगवान जगन्नाथ के निवास के लिए प्रसिद्ध है) ओडिसा मे मध्यवित्त कृषिप्रधान परिवार मे हुआ था. शुरुआत की शिक्षा अपने बड़े भाई के स्कूल में भानगढ मे ही, उनके मार्गदर्शन में करने के बाद उन्होंने कटक के रावेनशॉ कॉलेज जो उस समय ओडिसा का प्रमुख शिक्षाकेंद्र था. जो अब विश्वविद्यालय में तब्दील हो गया है. वहां से उन्होंने इतिहास में बी ए किया, और मधुसूदन लॉ कॉलेज से कानून की पढ़ाई पूरी की है. रवि राय ने अपने महाविद्यालयिन शिक्षा के दौरान ही अपने कॉलेज के यूनियन जॅक को हटाकर, तिरंगा झंडा फहराने के कारण पहली बार गिरफ्तार किए गए थे. और अपने राजनीति की शुरुआत की है. डॉ. राममनोहर लोहिया के करीबी लोगों मे से एक थे. 1949 मे यंग सोशलिस्ट लीग या नौजवान समाजवादी संघ जो बाद में समाजवादी युवजन सभा (एसवाईएस) के नाम से जाना जाता है. इस कारण उनके जीवन को समाजवादी विचारधारा और सामाजिक – राजनीतिक विचारधारा मे गहरी समझ विकसित होने मे मदद हुई है. जो जीवन के अंतिम समय तक कायम रहे हैं.


रवी राय जी पर स्वतंत्रता संग्राम के दौरान महात्मा गाँधी के विचारों का काफी प्रभाव था. समाजवादी नेताओं मे डॉ. राममनोहर लोहिया, आचार्य नरेंद्र देव और जयप्रकाश नारायण के विचारों से उनकी बौध्दिक और वैचारिक नींव को मजबूती प्रदान करने के लिए काफी मदद हुई है. उस कारण उनके राजनीतिक और सामाजिक गतिविधियों के साथ – साथ वे चौथे लोकसभा चुनाव में 1967 में पूरी लोकसभा निर्वाचन क्षेत्र से पहली बार लोकसभा चुनाव में जीत हासिल करने के बाद लोकसभा में प्रवेश किया. और संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी के संसदीय दल के नेता के रूप में चुनें गए थे. उसके बाद 1974 मे ओडिसा से राज्यसभा के लिए चुनें गए थे. 1977 मे बनी जनता पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव के साथ – साथ 1979 मे मोरारजी देसाई की सरकार मे उन्हें स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय के मंत्री के रूप में शामिल किया गया था. 1989 के आमचुनाव के दौरान उडिसा के केंद्रपाडा लोकसभा क्षेत्र से जनता दल के टिकट पर दुसरी बार लोकसभा में लौटे थे. और उनके जीवन का सबसे गौरव का समय 1989 – 91 के दौरान तब आया जब उन्हें 19 दिसंबर 1989 को नौवी लोकसभा का सर्वसम्मतिसे अध्यक्ष चुना गया था. और अध्यक्ष पद के शपथ ग्रहण समारोह के बाद दिऐ गए भाषण में उन्होंने ने संसद के सभी सदस्यों को आश्वासन दिया था कि “मैं दलगत राजनीति से उपर उठकर सभी सदस्यों के प्रति निष्पक्ष रहुंगा.” जब की वह दौर भारतीय संसदीय इतिहास का सबसे उथल-पुथल का दौर था. और ऐसे समय में निष्पक्ष रहने की अग्निपरीक्षा उनके डेढ़ साल से अधिक समय के कार्यकाल में, लगभग हर संसदीय सत्र में उन्हें चुनौतियों का सामना करना पडा है. सबसे पहला 6 नवंबर 1990 को जनता दल मे विभाजन होने के बाद 58 सदस्यों ने जनता दल से अलग होते हूए, अलग गुट का प्रतिनिधित्व करने वाले समुह का गठन करने के बाद उन्होंने जनता दल (एस) का दावा करते हूए, उन सदस्यों के निष्कासन के समय में चले दावे- प्रतिदावे के दौर में, विशेष रूप से नौवे लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में, जब की भारतीय संसदीय इतिहास में पहली बार त्रिशंकु लोकसभा बनी थी. इस अनिश्चितता की और राजनीतिक उथल-पुथल की स्थिति में उनकी निष्पक्षता की कसौटी और कानूनी कौशल सामने आया है. और उन्होंने उस समय एक मिसाल कायम करने वाला फैसला किया है.

लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में रवि राय द्वारा लिए गए, फैसलों मे से और एक महत्वपूर्ण फैसला भारत के सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाने के एक प्रस्ताव को स्वीकार करना था. जिसे उन्होंने स्विकार किया. और बाद में उस न्यायाधीश को हटाने के लिए जिन आधारों पर प्रार्थना की गई थी, उसकी जांच करने के लिए उन्होंने एक समिति का गठन किया, जिसका सभी सदस्यों ने मिलकर अपने दलगत राजनीति से उपर उठकर उन्हें सर्व सम्मति से लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में उनका चुनाव किया था. उसका सही प्रतिबिंब दिखाई देता है. और रवि राय जी ने अपनी सादगी और पारदर्शीता तथा इमानदारी से निष्पक्ष और विवेकपूर्ण दृष्टिकोण से उनके लोकसभा के अध्यक्ष का कार्यकाल वर्तमान समय के लोकसभा और राज्यसभा के कार्यकालो की चल रही दुर्दशा की स्थिति में और भी ज्यादा तिव्रता से उभरकर सामने आ रहा है.

क्योंकि वह गठबंधन की सरकारो का दौर था. इस कारण काफी चुनौती पूर्ण दौर था . और उस परिस्थिति में संसद में जबरदस्त राजनीतिक अस्थिरता थी. उनके कार्यकाल के ऐसे नाजुक दौर में उन्होंने अपने निष्पक्षता और कठोर अनुशासन का परिचय देते हुए, लोकसभा की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाने के लिए सभी दलों के बीच संतुलन बनाए रखने का अद्भुत काम करने का परिचय देते हुए, संसद की गरिमा तथा मर्यादा को बनाए रखने के लिए विशेष रूप से कोशिश करते हूए, संसदीय लोकतांत्रिक प्रक्रिया को मजबूती प्रदान करने का एतिहासिक काम किया है. रवि राय ने सदस्यों को आम लोगों को प्रभावित करने वाले मुद्दों को उठाने के लिए अधिक से अधिक अवसर देकर लोकसभा के कामकाज को नई दिशा दी है. सार्वजनिक वितरण प्रणाली के माध्यम से खाद्यान्न की उपलब्धता, पेयजल सुविधा, आवास, स्वास्थ्य सेवा, ज्योतने वाले को कृषीयोग्य जमीन, रोजगार, प्राथमिक शिक्षण, गरीब और कमजोर वर्गों के शोषण और उत्पीडन के खिलाफ सुरक्षा तथा सांप्रदायिक दंगो के खिलाफ तथा मुल्यवृध्दि को रोकने के लिए कारगर उपाय, विकास तथा रक्षा जैसे राष्ट्रीय सरोकारों के मामलों को विशेष रूप से प्रथमिकता दी है. और उन्होंने संसद सदन को सही अर्थों में विचार – विमर्श के लिए कुशलतापूर्वक बहस करने के लिए सकारात्मक और रचनात्मक मार्गदर्शन किया है.
अध्यक्ष रवि राय के कार्यकाल में सबसे जिम्मेदारी का नाजुक दौर वी पी सिंह के द्वारा पहली बार सरकार के तरफ से विश्वास मत प्रस्ताव को संसद में रखा गया था, उस प्रस्तावपर उसी दिन चर्चा करते हुए उसे स्वीकार किया गया. और 11 महिने की वी पी सिंह की सरकारने विश्वास मत हारने की वजह से वी पी सिंह सरकार को इस्तीफा देना पडा था.


अपने अध्यक्ष पद के दौरान रवि राय ने सदन की प्रक्रियाओं मे कुछ बदलाव किए, ताकि सदस्यों को अत्यावश्यक सार्वजनिक महत्व के मामलों को उठाने के लिए अधिक से अधिक अवसर प्रदान किया जा सके. इसलिए शून्य काल में ऐसे मामलों को उठाने के लिए पहले प्रावधान नहीं था. लेकिन सदस्यों द्वारा हमेशा महत्वपूर्ण मुद्दों पर सदन का ध्यान आकर्षित करने के लिए इसका उपयोग किया जाता रहा है. रवि राय ने सदन के समय का बेहतर उपयोग के लिए शून्य काल के दौरान कार्यवाही को नियमित करने के लिए एक संस्थागत व्यवस्था की शुरुआत की है. सदन में विभिन्न दलो और समुहो के नेताओं के विचारों को जानने के बाद, 7 सदस्यों को अत्यावश्यक सार्वजनिक मामलों पर एक – एक करके संक्षिप्त प्रस्तुतियां देने के लिए अनुमति प्रदान करने का प्रावधान किया है. जिससे सदन मे सुव्यवस्थित तरीके से मामले उठाए गए. और सदन के समय का अधिक इष्टतम उपयोग हुआ, इससे बहुत ही रचनात्मक परिणाम सामने आए, जिससे सरकार को सदन या उसके बड़े वर्गों को परेशान करने वालें मुद्दों पर दृढ़ प्रतिबध्दताए बनाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. केंद्रीय मंत्री और लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में रवि राय ने सदन के संचालन में एक समृद्ध परंपरा स्थापित की थी. उन्होंने अपने संपूर्ण जीवन में समाजवादी विचारधारा और नैतिक मूल्यों के लिए प्रतिबद्धता के साथ काम किया है. उन्होंने विभिन्न संसदीय प्रतिनिधी मंडलो के नेता के रूप में विभिन्न देशों की यात्राऐ भी की है. वह चौखंबा (हिंदी) पाक्षिक और समता (उडिया) मासिक पत्रिकाओं के संपादक भी रहे थे. वे तीसरी और अंतिम बार 1991 मे जनता दल के उम्मीदवार के रूप में दसवी लोकसभा चुनाव में चुनकर गए थे. रवि राय का लंबी बीमारी के बाद 6 मार्च 2017 को 91 साल की उम्र में कटक के एसबीसी मेडिकल कॉलेज के अस्पताल में निधन हो गया. उनकी जीवन संगिनी डॉ. सरस्वती स्वैन ने शादी के बाद भी अपने नाम को नही बदलने का उदाहरण समाजवादी प्रतिबध्दता दिखाता है.

इस परिप्रेक्ष्य में वर्तमान समय मे संसद सिर्फ वर्तमान सत्ताधारी दल का दलगत सभागार में तब्दील हो जाना. और भी प्रमुखता से दिखाई दे रहा है. किस तरह से विरोधी दलों के सदस्यों को सभागार में बोलने से लेकर उनके माइक बंद करने का काम सिर्फ माइक बंद करने का तांत्रिक काम नही, यह देख कर लगता है कि यह संसदिय लोकतंत्र का गला घोटने का काम बदस्तूर जारी है. 2023 मे चुनाव आयोग की चयन प्रक्रिया से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाकर सिर्फ विरोधी दल के नेता को रखने की नौटंकी करते हुए प्रधानमंत्री और केंद्रीय मंत्री के बहुमत से चुनाव आयोग का चयन कमेटी मे विरोधी दल के नेता के शामिल होने का क्या मतलब है ? और उस चयन मे सत्ताधारी दल के बहुमत को रखतें हूऐ अपने ही पसंद के चुने हुए चुनाव आयोग के सदस्यों के किसी भी प्रकार के सिविल या क्रिमिनल अपराधों को हमारे देश के समान नागरिक संहिता के दायरे से बाहर कर दिया जाना, तथा उनके उपर पदो पर रहते हूऐ या पदमुक्त होने बाद भी, उनके जीवीत रहने तक कोई भी कानूनी कार्यवाही नहीं होगी. इन विशेष प्रावधानों को CIASE – 16, CEC AND EC – BILL 2023 करने के पहले 140 संसदसदस्यो को सभागृह से सस्पेंड करने के बाद, बगैर किसी बहस से चुनाव आयोग के सदस्यों के चयन का बदलाव किस उद्देश्य से किया है ? भारत के सभी विरोधी दलों के नेताओं ने या नहीं समझने की भूल की या जान बुझ कर करने की वजह से, आज विरोधी दलों को चुनाव आयोग की वर्तमान समय में चल रही मनमानीयो के विरोध को लेकर सडकपर आना पड रहा है ? लेकिन सिर्फ सडकों पर उतरने के बाद उसी चुनाव आयोग के संचालन में चुनाव में शामिल होने का क्या मतलब है ? इस चुनाव आयोग की निगरानी मे महाराष्ट्र के विधानसभा के चुनाव में साफ – साफ देखने के बाद भी विरोधी दलों के नेताओं की आंखे नहीं खुली. इस बात का मुझे रह-रहकर अचरज हो रहा है. क्योंकि आज बीहार के चुनाव के ईद- गिर्द सरकारी खजाने से खुलेआम पैसे बांटकर मतों को प्रभावित करने की धांधली का सज्ञान चुनाव आयोग ने और विरोधी दलों के नेताओं ने भी नहीं लेना, इसी को देख कर इस चुनाव का नतीजा क्या आयेगा? यह तय हो गया था. और इसिके लिए चुनाव आयोग की चयन प्रक्रिया और उनके हर तरह के सिविल तथा अपराध वाले मामलों को CIASE – 16 CEC & EC – BILL 2023 का कवच पहनाने का बंदोबस्त करना, जिसमें चुनाव आयोग के सदस्यों पर एफआईआर नहीं हो सकता, और उनके उपर कोई भी कोर्ट में केस दर्ज नहीं किया जा सकता, जैसे विशेष प्रावधान जो कि हमारे देश के राष्ट्रपति के लिए भी नही रहते हूऐ. सिर्फ चुनाव आयोग के लिए यह विशेष संविधान में संशोधन करने का भाजपा का उद्देश्य चुनाव आयोग के लिए देश के समान नागरिक संहिता को बदलकर विशेष प्रावधान कराकर लेने का उद्देश्य, क्या देश की चुनाव प्रणाली में पिछले 73 सालों से लगातार शामिल राजनीतिक दलों के नेताओं के समझ में नहीं आना भी मेरे लिए एक पहेली बनी हुई है. इस परिस्थिति में मुझे आदरणीय रवी राय जी की बरबस याद आ रही है.


इस हरकत को देख कर मुझे आपातकाल के दौरान श्रीमती इंदिरा गांधी ने मीसा तथा विभिन्न प्रावधानों के तहत विरोधी दलों के संसदसदस्यो को गिरफ्तार करने के बाद विभिन्न जेलों में बंद कर दिया था. और 41 – 42 वे संविधान संशोधन कराकर प्रधानमंत्री से लेकर राष्ट्रपति तथा उपराष्ट्रपति और लोकसभा के अध्यक्ष को किसी भी प्रकार के अपराधिक या सिविल गुनाहों पर कोई भी कारवाई नहीं होगी. और लोकसभा का कार्यकाल 5 साल से छ साल का कर लिया था. इसितरह के प्रावधान बदलने की करतुत याद आ रही है . उस दौरान हमलोग भूमिगत रहते हूऐ उनके इन बदले हूऐ प्रावधानों मे क्या- क्या बदलाव किया गया है ? यह समझाने के लिए बुलेटिन्स सायक्लोस्टाइल कराकर बांटने का काम करते थे. लेकिन वर्तमान सत्ताधारी दल भाजपा और उनके मातृसंस्था आर एस एस ने आपातकाल को इस वर्ष 50 साल होने के उपलक्ष्य में इन सब बातों को लेकर खुब हल्ला मचाया है. और खुद समान नागरिक संहिता के दांवे करते हूऐ, चुनाव आयोग को लेकर किए गए विशेष प्रावधानों के बाद ही तो चुनाव आयोग वोटर लिस्ट से नाम हटाने और जोडने से लेकर किसी भी तरह की जानकारी नहीं देने का दुःसाहस कर रहा है . और महाराष्ट्र से लेकर आज बीहार की विधानसभा चुनाव में हुई धांधली करते हूऐ भाजपा को सत्ता में आने के लिए जो मार्ग प्रशस्त करने के लिए चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए जा रहे हैं.

ऐसे समय में विपक्ष और सत्ताधारी दल की आवाजें बराबर सुनी जा सके. इस बात के लिए रवि राय जी की समाजवादी पृष्ठभूमि ने उन्हें सामाजिक न्याय और समावेशी चर्चाओं के लिए आज भी याद किया जाता है. उन्होंने संसद में अल्पसंख्यक और छोटे दलों को भी बोलने के लिए पर्याप्त अवसर दिया था. जिससे संसदीय लोकतंत्र की समावेशिता बढी है. और आज पिछले ग्यारह सालों से हमारी लोकसभा और राज्यसभा को सिर्फ सत्ताधारी दल का सभागार मे तब्दील कर दिया गया है. और विरोधियों को जानबूझकर सभागार में है तो नही बोलने देना, अन्यथा किसी भी बहाने से सभागार के बाहर निकाल कर बगैर कोई बहस – मुहांबसा किए बिना बिलो को पास करने का दुःसाहस देखकर रवि राय जी के डेढ साल के लोकसभा के अध्यक्ष का कार्यकाल मुझे बार-बार याद आ रहा है.

रवि राय ने लोकसभा की कार्यवाही को और पारदर्शी बनाने के लिए कई प्रक्रियात्मक सुधारो का समर्थन किया. उन्होंने संसदीय समितियों की भूमिका को मजबूत करने पर विशेष ध्यान दिया,जो नितिगत निर्णयों मे बहुत महत्वपूर्ण होती है.उनके लोकसभा के अध्यक्ष के कार्यकाल में संसदीय राजनीति में अपराधिक पृष्ठभूमि के लोगों के समावेश होने के मुद्दे पर काफी गंभीरता से चर्चा की गई थी. इस कारण दो साल पश्चात 1993 मे तत्कालीन सीबीआई के प्रमुख एन एन वोरा की अध्यक्षता में कमेटी का गठन किया गया था. जिसमें अपराधियों, राजनेताओं और नौकरशाहो के बीच के संबंध (Nexus) की जांच करने का काम किया है. इस प्रयास के परिप्रेक्ष्य में मुझे वर्तमान सरकारने 130 वे संशोधन बिल के आड मे भी यही दावा करते हूए, बिल लाने की शुरुआत कर दी है. और वह आज नहीं तो कल भले ही विरोधी संसद सदस्यों को संसद के बाहर कर के भी बिल पास करा लेंगे. क्योंकि उन्हें देश मे से विरोध दलो की सरकारों को समाप्त करने का मन बना लिया है. क्योंकि भाजपा आर एस एस का ‘एकचालकानुवर्त’ के सिद्धांत के अनुसार ही अपने काम कर रहा है. क्योंकि आर एस एस को वर्तमान संसदीय जनतंत्र बिल्कुल भी पसंद नहीं है. इसलिए 100 साल से आजतक आर एस एस के संघठन के पदाधिकारियों का चुनाव नहीं होता है. वह नियुक्ति से पदाधिकारी बनते है. और सौ साल होने के बाद भी अपने संगठन का संविधान के अनुसार रजिस्ट्रेशन करना तो दूर की बात है. उल्टा हिंदू धर्म का कहां रजिस्ट्रेशन हुआ है जैसे दुःसाहसपुर्ण सवाल कर रहे हैं. और इसलिए संपूर्ण देश में सिर्फ अपने ही दल की सरकार चाहिए. जिसे वह डबल इंजीन वालीं सरकार जैसे जुमले बोलते हैं. यह सब देखते हूऐ मुझे आज बार – बार रवि राय जी की याद आ रही है.
उनके कार्यकाल में संसद की कार्यवाही को व्यवस्थित करने के लिए तकनीकी और प्रशासनिक सुधारो पर विशेष ध्यान दिया गया है.1989 – 91 का दौर भारत के लिए राजनीतिक रूप से अस्थिरता का दौर था .जिसमें वी पी सिंह की सरकार और उसके बाद चंद्रशेखर की अल्पकालिक सरकार थी. रवी राय ने ऐसे नाजुक दौर के बीच में सदन की कार्यवाही को स्थिर और प्रभावी बनाए रखा .उन्होंने संसद में होने वाली तीखी बहसों को संयमित ढंग से संभालने और पक्षपात के आरोपों से मुक्त रहे हैं. रवि राय ने अपने समाजवादी और गांधीवादी मुल्यो को अपने कार्य में शामिल करते हूए ,उन्होंने संसद में गरीबी उन्मूलन, सामाजिक समता और ग्रामीण विकास जैसे मुद्दों पर चर्चा को प्रोत्साहित किया. उनके भाषण और हस्तक्षेप अक्सर नैतिकता और सामाजिक कल्याण पर केंद्रित होते थे. जो उनके समाजवादी प्रतिबध्दता को दर्शाता है.


रवि राय ने लोकसभा की संप्रभुता और स्वतंत्रता को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है. उन्होंने कार्यपालिका (सरकार) के अनुचित दबावों से संसद को मुक्त रखने का प्रयास किया. जिससे विधायिका की गरिमा बनी रही. रवी राय जी का लोकसभा अध्यक्ष का कार्यकाल भले ही कम रहा है. (19) महिने, लेकिन भारतीय संसदीय इतिहास में एक उदाहरण के रूप में आज भी देखा जा सकता है . मुझे 2016 मे पूर्व लोकसभा के अध्यक्ष बैरिस्टर सोमनाथ चटर्जी को शांतिनिकेतन मे उनके आवास पर उनके जीवन के अंतिम दौर में काफी लंबी बातचीत करने का मौका मिला है. और रवी राय जी के लोकसभा अध्यक्ष के रूप में उस दौर के साक्षी और उनके बाद वह भी लोकसभा के पूर्व अध्यक्ष रहने के कारण उन्होंने मुझे उस समय की बातचीत में रवी राय जी के संसदीय योगदान के बारे में काफी विस्तार से जानकारी दी है. उन्होंने कहा कि रवि राय जी ने ऐसे नाजुक दौर मे चुनौतियों के बीच में संसद की गरिमा को बनाए रखने के कारण , हमारे जैसे बाद में आनेवाले अध्यक्ष के कार्यकाल शूरू होने के पहले, उनके अध्यक्षीय कार्यकाल को मैने एक सदस्य के रूप में बहुत ही नजदीक से देखा है. और मैंने अपने इतने लंबे संसदीय जीवन में ऐसे स्वतंत्र तथा किसी भी प्रकार के दबाव से मुक्त होकर काम करने वाले अध्यक्ष नहीं देखे. आज संसद की कार्यवाही का प्रसारण मे हमारे देश की संसद के पिठासिन अध्यक्ष जी को नजर के सामने लाने से क्या दिखाई दे रहा है ? हांलांकि उन्होंने भाजपा की सदस्यता का अध्यक्षता स्विकारने बाद त्यागपत्र तो कागज पर दे दिया है. लेकिन उनके कार्यप्रणाली को देखकर कही भी नहीं लग रहा है कि इन्होंने सचमुच ही भाजपा का इस्तीफा दिया है.अब तो उन्हे अपने आप को बदलने की कोई गुंजाइश भी नहीं है. क्योंकि उच्च सभागृह राज्यसभा के सभापती जो देश के उपराष्ट्रपति भी थे उन्होंने सिर्फ विरोधी दल के नेता मल्लिकार्जुन खरगे को ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा शुरू करने की इजाजत देने के लिए, उन्हें अपने पद से इस्तीफा देने के लिए मजबूर किया गया. और इस बात को लेकर कोई चर्चा भी नहीं होने देना किस बात का परिचायक है ? यह देखने के बाद वर्तमान सत्ताधारी दल हमारे देश की संसदीय प्रणाली को सिर्फ अपने पार्टी के सभागृह के रूप में देखना चाहता है.राज्यसभा के सभापति अपनी अध्यक्ष की कुर्सी पर रहते हुए, भाजपा के अध्यक्ष जेपी नड्डा ने सभागार में खडे होकर कहां है कि “अभी जो भी कारवाही चल रही है, वह रेकॉर्ड नहीं होगी.” उसी समय मुझे दिखाई दे रहा था, कि अब राज्यसभा के सभापति महोदय इस पदपर दोबारा दिखाई नहीं देंगे. और वही हुआ. इस परिप्रेक्ष्य में रवी राय जी की जन्मशताब्दी आने वाले वर्ष हम सभी साथियों को मिलकर मनना है, तो संसदीय जनतंत्र को कैसे बचाया जा सकता ? इस लक्ष्य को नजर के सामने रखकर ही मनाना चाहिए. अन्यथा एक कर्मकांड के रूप में मनाने की कोई आवश्यकता नहीं है. क्योंकि जब हमारे देश में चल रहे संसदीय जनतंत्र को एक फासिस्ट दल के कब्जे में चले जाने के दौरान हम सभी साथीयों ने आदरणीय रवी राय जी की जन्मशताब्दी वर्ष के दौरान हमारा मुख्य लक्ष्य संसदीय जनतंत्र को बचाने के लिये एक मुहिम के तौर पर ही मनाना सही श्रध्दांजलि होगी.

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