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विनाशकाले विपरीत बुद्धी. | Pavitra India

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25 जून 1975 को आधी रात के बाद दिल्ली के गांधी शांति प्रतिष्ठान में दिल्ली पुलिस आज सुबह के जैसे ही जयप्रकाश नारायण के कमरे में घुसकर और उन्हें निंद से उठाकर, कहा कि “श्रीमती इंदिरा गाँधी जी ने आपातकाल की घोषणा कर दी है और आपको गिरफ्तार करने का ऑर्डर दिया है”. तब जयप्रकाश नारायण के मुंह से अनायास ही “विनाश काले विपरीत बुद्धी” यह वचन निकल गया था. जो मुझे दिल्ली में पिछले साल रात को अंधेरे में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करने की तथा कुछ दिनों पहले न्यूजक्लिक के पत्रकारों को गिरफ्तार करने के बाद तत्काल याद आया.


भारतीय जनता पार्टी के भिष्म पिता, और हमारे देश के पूर्व उपप्रधान मंत्री, लालकृष्ण आडवाणी ने 25 जून 2015 को, श्रीमती इंदिरा गाँधी जी के द्वारा आपातकाल की घोषणा के 40 साल होने के उपलक्ष्य में तत्कालीन इंडियन एक्सप्रेस के प्रधान संपादक श्री. शेखर गुप्ता को,’वॉक वुईथ टॉक’ एनडीटीवी के लिए, एक साक्षात्कार में, उन्होंने खुलकर कहा है कि ” उस समय के आपातकाल की घोषणा को आज 40 साल हो रहे हैं. लेकिन पिछले एक साल से भारत में अघोषित आपातकाल जारी है, उसका क्या ? यह साक्षात्कार अॉन लाईन शेखर गुप्ता और लालकृष्ण आडवाणी ‘वॉक वुइथ टॉक’ कार्यक्रम में ‘यू ट्यूब’ और ‘इंडियन एक्स्प्रेस’ के 2015 के 26-27 जून के कॉपीयो में मिल जायेगा .


वैसे तो उनके कथन के अनुसार, “भारत में पिछले दस सालों से अघोषित आपातकाल और सेंसरशिप जारी है. ” लेकिन उसके बावजूद कुछ पत्रकारों का जमीर जिंदा है. तो वह अपने तरीके से अभिव्यक्त करने की कोशिश कर रहे थे. ‘थे ‘इसलिए पिछले साल के अंतिम पड़ाव में सुबह के छ बजे न्यूज क्लिक की टीम के छ पत्रकारों को दिल्ली पुलिस ने गिरफ्तार कर के ले गए हैं. इसी तरह कांग्रेस के बैंक खातों को सिझ करना और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को गिरफ्तार करने, और उसके पहले लालू प्रसाद यादव से लेकर हेमंत सोरेन, मायावती, ममता बॅनर्जी,नितिश कुमार, शिवसेना तथा एसीपी कांग्रेस तथा विरोधी दलों को तोड़कर महाराष्ट्र की सत्ता को हथियाने का उदाहरण, पार्टी वुईथ डिफरंस के द्वारा किया गया है. कर्नाटक, मध्यप्रदेश, राजस्थान, गोआ तथा उत्तर पूर्वी प्रदेशों में, जोडतोड करते हुए, अपनी पार्टी की सरकारों को बनाना. और सबसे हैरानी की बात, हमारे देश की पार्लियामेंट, चुनाव आयोग, ईडी, सीबीआई, आई बी, सेबी, बैंक, विमा कंपनीया मतलब भारत की सभी संविधानिक संस्थानों को कब्जे में लेकर विरोधी दलों को खत्म करवाना भारतीय राजनीति के इतिहास में पहली बार किसी सत्ताधारी दल के द्वारा, धड़ल्ले से हो रहा है. और रात के अंधेरे में केजरीवाल को पूछताछ के बहाने गिरफ्तार करने की कृति को, भारतीय राजनीति में पहली बार किसी सत्ताधारी मुख्यमंत्री को, बगैर कोई सबूत दिखाए, गिरफ्तार करने की घटना और वह भी लोकसभा चुनावों की घोषणा होने के बाद, देखकर तो सिधी राजनीतिक बदले की कार्रवाई लगती है. चारसौ का आकडा पार करने के लिए क्या- क्या कारनामे कर रहे हैं ? वैसे तो चुनाव आयोग तो पूरी तरह सरकार की मुठ्ठी में है. और ईवीएम के बारे में हॅकिंग का मुद्दा तो है ही. लेकिन सत्ता के नशे में, जिस तरह से इंदिरा गाँधी भी अपना आपा खो बैठीं थी बिल्कुल ही आज वही दोहराया जा रहा है.


और गैरभाजपा सरकारों के साथ वहाँ पर भेजे गए, राज्यपालों के व्यवहार सिर्फ उदाहरण के लिए, वर्तमान समय में तमिलनाडु के राज्यपाल का, एक मंत्री को शपथ दिलाने से इन्कार करना भारतीय संविधान का उल्लंघन का संगिन अपराध है. जिसका सज्ञान हमारे सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश को लेना पड रहा है. अन्य गैरभाजपा राज्यों में तो राज्यपालों ने वहां के मुख्यमंत्रियों के कामकाज में दखलंदाजी करना आम बात हो गई है. शायद ही कोई गैरभाजपा राज्य होगा जहां पर राज्यपालों के तरफसे वहां की सरकारों के साथ असंविधानिक हस्तक्षेप करने के रोजमर्रे के उदाहरण नहीं है. पूरे देश में सिर्फ भाजपा की ही सरकारें चलाने का नशा जो सरपर चढ गया है. लेकिन अंग्रेजों के जैसी बाँटो और राज करने के वजह से जैसे एक बार बटवारे का सामना करना पड़ा है. वहीं नौबत संघ और उसकी राजनीतिक इकाई भाजपा हमारे देश में लाने की कोशिश कर रहे हैं 370, राममंदिर, एन आर सी जैसे मनमानीया करने से और क्या होगा ?


साथियों सबसे हैरानी की बात, यहीं भारतीय जनता पार्टी, और उसका मातृ संघठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पिछले 50 सालों से हरसाल आपातकाल की घोषणा के 25 जून के दिवस को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को लेकर खुब भाषण देते रहते हैं. लेकिन 2013 में ही मिडिया संस्थाओं के मालिकों को संघ और संघ की राजनीतिक ईकाई भाजपा के फेवर में, कवरेज करने के लिए तैयार कर लिया था. जिसके लिए अंबानी और अदानी समूह ने सब से बडी भूमिका निभाई है.
यह देखकर मुझे जर्मनी में हिटलर ने भी आज से सौ साल पहले अपनी पार्टी के लिए, धन मुहैया कराने से लेकर मिडिया कवरेज करने के लिए, जर्मनी के उद्योगपतियों को थैलियां खोलकर धन देने के लिए, और तथाकथित जर्मनी के राष्ट्र निर्माण के लिए, बेतहाशा औद्योगिक उत्पादन करने के लिए, खुली छूट देने का आश्वासन सत्ताधारी बनाने के लिए दिया था.
2014 के मई माह के अंतिम सप्ताह में, सत्ताधारी बनने के बाद, भारत के इलेक्ट्रॉनिक मीडिया से लेकर प्रिंट मीडिया के बहुत बड़े हिस्से ने पहले ही हथियार डाल दिए हैं. लेकिन कुछ रिढ की हड्डी बचि हुए लोगों ने अपनी अभिव्यक्ति जारी रखने की कोशिश की है. लेकिन आज की घटना से अब संपूर्ण देश में भय का माहौल बन रहा है.
जो मैंने मेरी उम्र के 23 वे साल में 25 जून 1975 के बाद देखा है. उस दिन मै जयप्रकाश नारायण के बुलावे पर, पटना के लिए नागपुर से पटना की ट्रेन में सवार होकर बैठा हुआ था. और जबलपुर स्टेशन पर सुबह – सुबह लोग फुसफुसाती आवाज में आपस में बात कर रहे थे कि “श्रीमती इंदिरा गाँधी ने आपातकाल की घोषणा कर दी है. और जयप्रकाश नारायण से लेकर सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया है.” तो मन-ही-मन में मैंने सोचा कि अब पटना जाकर क्या करुंगा ? तो जबलपुर स्टेशन पर ही गाड़ी में से अपने सामान को चुपचाप उठाया और स्टेशन के बाहर आकर रिक्षेवाले को बसस्टेंड के लिए चलने के लिए बोलकर बैठ गया. और 1976 के अक्तूबर के प्रथम सप्ताह में गिरफ्तार होने के पहले तक, भूमिगत काम में लगा था. तो भूमिगत रहने के समय मुझे संघ से सहानुभूति रखने वाले लोगों की भी मदद मिली है. तब बातचीत में मै उन्हें कहाँ करता था कि यह जो आपातकाल जारी है, यह बहुत ही ढिलाढाला है क्योंकि यह सिर्फ श्रीमती इंदिरा गाँधी की मर्जी से लगाया गया है. लेकिन उनके अपने दल में बहुत लोग हैं जिन्हें यह पसंद नहीं है. लेकिन भविष्य में कभी आप लोग सत्ता में आओगे तो इंदिरा गाँधी के जैसे बगैर किसी घोषणा से ही आप लोगों का राज खुद ही आपातकाल रहने की संभावना है. क्योंकि आपका केडर बेस संघठन है. और आज भी आपके लोग सीबीआई आईबी तथा पुलिस तथा विभिन्न क्षेत्रों में भरे हुए हैं. क्योंकि मेरे जैसे आदमी को जिस तरह से अंडरग्राउंड रहने को मिल रहा है. यह क्या सीआईडीयो की बगैर मालूमात से इतने दिनों से चल रहा है ?
और जब पकड़ा गया और जेल में पहुंच कर देखता हूँ, कि संघी लोग छपा हुआ माफीनामे पर हस्ताक्षर किए जा रहे थे. और इंदिरा गाँधी द्वारा घोषित 21 पॉईंट प्रोग्राम को अमल में लाने के लिए , हमें मुक्त किजिए. ऐसा अंडरटेकिंग लिखकर देते हुए, हस्ताक्षर अभियान चला रहे थे. तो मैंने कहा कि “श्रीमती इंदिरा गाँधी जी आपके माफीनामा और आपके अंडरटेकिंग सब कुछ अपने पास रख लेगी और आप लोग जेल में ही रहोगे तो काहे को अपनी आबरू गवाने की गलती कर रहे हो ?” तो बोले कि “हम तो सिर्फ एक स्टेटेजी के तहत यह सब कर रहे हैं. बाकी हमें जो करना है, वहीं करेंगे. “जो बैरिस्टर सावरकर के माफीनामे के भी, समर्थन में यही तर्क संघ के स्वयंसेवक से लेकर सावरकर सिनेमा बनाने वाले, रणजित हूडा तक, देते हुए देखे जा रहे है.
यह वही पाखंडी लोग हैं, जो आज इस देश के सत्ताधारी बने हुए हैं. और सत्तारूढ़ होने के दुसरे ही क्षण से श्रीमती इंदिरा गाँधी से जो भी खामीया रह गई थी उन्हें टालते हुए, बगैर आपातकाल, सेंसरशिप की घोषणा किए, हमारे देश की सभी संविधानिक संस्थान, न्यायालय, जांच एजेंसियों से लेकर संसद, पुलिस, सेनाओं तथा मिडिया संस्थाओं की नकेल कसने के कामों में लग गए. और बगैर किसी भी आपातकाल की घोषणा और सेंसरशिप जो श्रीमती इंदिरा गाँधी ने घोषणा कर के लगा दी थी इन्होंने ऐसा कुछ भी नहीं करते हुए न्यायपालिका से लेकर संसद, जाँच एजेंसियों, चुनाव आयोग से लेकर हर संविधानिक संस्थानों को अपने खुद के सुविधा के अनुसार इस्तेमाल करने की शुरूआत कर दिया है.


और लालकृष्ण आडवाणीजी ने इन्हें सत्ताधारी बनने के एक साल में ही कहा है कि “यह अघोषित आपातकाल और सेंसरशिप जारी है.” जिस तरह से गुजरात के दंगों के बाद, तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा कि “राजधर्म का पालन नही हुआ है. ”


25-26 जून 1975 के दिन जो 50 सालों पहले की तरह ही, आज महसूस हो रहा है. दक्षिण भारत में जनसभा को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री “बार- बार हमारा प्रजातंत्र खतरे में है जिसे बचाने के लिए आप लोगों को मै विनती कर रहा हूँ. और हमें सिर्फ पांच साल का एक मौका दो.” यही बात 2013-14 की सभाओं में “मुझे एक मौका दो” जो देकर दस सालों से देश भुगत रहा है. और आजसे सौ वर्ष पहले जर्मनी में हिटलर भी इसी तरह के भाषण देते हुए, आम जर्मनी के लोगों को बहकाने में कामयाब हुआ था.


आजसे सौ साल पहले जर्मनी में जर्मन सेना में, सिर्फ कार्पोरल के पद पर रहा हुआ, अडॉल्फ हिटलर की भाव भंगिमाओं को याद करते हुए लगता है कि भारत में हूबहू इतिहास दोहराया जा रहा है. वह भी दुमा के रास्ते जर्मनी के सबसे बड़े पद, चांसलर तक, ऐसी ही भाषा तथा वाक़पटुता दिखा – दिखा कर पंद्रह साल सिर्फ जर्मनी ही नहीं समस्त विश्व के नांक में दम कर दिया था. उसने भी सत्ताधारी बनने के बाद, अपने विरोधियों को बेरहमी से खत्म करने से लेकर, मिडिया तथा पार्लियामेंट को आग लगा कर दुसरों के उपर अनाप-शनाप आरोप करते हुए और जब देखो तब जर्मन राष्ट्रवाद की चाशनी मे, बेतहाशा नफरत फैलाते हुए. 30 जनवरी 1930 से 30 अप्रैल 1945 तक अपनी कनपटी पर, खुद ही पिस्टल का स्ट्रीग्रर दबा कर, अपने आपको खत्म कर लिया. तो जर्मनी के साथ संपूर्ण विश्व ने राहत की सांस ली है. इतिहास बडा ही बेरहम होता है. किसके साथ क्या होगा ? यह आज कहना संभव नहीं. लेकिन इतिहास में हुई गलतियों से सिखकर उन्हें न दोहराना ही सबसे बड़ा बुध्दिमानी का काम है. अन्यथा जयप्रकाश नारायण को आधी रात में निंद से उठाकर दिल्ली पुलिस जब गिरफ्तार करने आई थी और पुलिस ने उन्हें कहा कि मैडम इंदिरा गाँधी जी ने आपातकाल की घोषणा कर दी है. और हमें आपकी गिरफ्तारी करने का आदेश दिया है. तब जयप्रकाश नारायण के मुहं से अनायास ही “विनाशकाले विपरीत बुध्दि” यह वाक्य निकला था.

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