हमारे देश का सुप्रीम कोर्ट भी हमारे देश के लोकतंत्र का एक स्तंभ है, इसलिए सुप्रीम कोर्ट से यह सवाल मैं पूछना चाहता हूँ कि जब गलतियां होती हैं, जब प्रक्रिया शुरू होती है तभी वह उसे क्यों नहीं रोक देते? जब देश की गरीब जनता की लाखों करोड़ रुपए की कमाई खर्च हो जाए, तीन या चार या पांच या 10 चुनाव देश के और विधानसभाओं के हो जाएं, उसके बाद अगर सुप्रीम कोर्ट कहे कि यह प्रक्रिया सही नहीं है इसके लिए कोई और प्रक्रिया शुरू होनी चाहिए, नागरिकता के प्रमाण पत्र के लिए चुनाव आयोग ही आखिरी प्रमाण पत्र देने वाली संस्था बन जाए, तब यह सवाल सुप्रीम कोर्ट से ही पूछा जाना चाहिए की, पहले वोटर आईडी बनाने के लिए नंदन नीलकानी की कंपनी को जिन्होंने ठेका दिया क्या उन पर जिम्मेदारी नहीं डालनी चाहिए?
जिन्होंने आधार कार्ड की कल्पना की और इस देश के 140 करोड़ों लोगों का आधार कार्ड बनवाया जिसमें फिर से लाखों करोड़ रुपए खर्च हुए, क्या उनके ऊपर देश के इस पेज को अगर ढंग से खर्च करने की जिम्मेदारी नहीं डालनी चाहिए? इसके बाद या इसके साथ पैन कार्ड बना और और हर संस्था में, यहां तक की मोबाइल का सिम कार्ड लेना हो पैन कार्ड और आधार कार्ड दिखाना अनिवार्य कर दिया गया, यह जिन्होंने किया, क्या उनकी कोई जिम्मेदारी तय नहीं होनी चाहिए, अब सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यह सारे प्रमाण नागरिकता तय करने के लिए पर्याप्त नहीं है, इसका मतलब अब चुनाव आयोग नागरिकता तय करने के लिए फिर से देश के गरीब आदमी के टैक्स के लाखों करोड़ रुपए खर्च करके एक नया पहचान पत्र की योजना बनाएगा, , और अब जब तक यह नई योजना नहीं बन जाती और जब तक स्थाई रूप से नागरिकता तय नहीं हो जाती तब तक यह खतरा बना रहेगा कि अगला चुनाव तब तक होगा या नहीं होगा,.. देश की लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव आने वाले तीन या चार साल में होने वाले हैं, क्या यह चुनाव अब जब तक नागरिकता प्रमाणित करने की प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती, तब तक टल जाएंगे, और अगर ऐसा हुआ तो यह लोकतंत्र के लिए एक गंभीर संकट होगा?
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