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केमिकल वेपन : डॉक्टर्स की एक खतरनाक साजिश? | Pavitra India

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पिछले दो दशकों में भारत में बम ब्लास्टों के जरिए कई आतंकी हमले हो चुके हैं, जिसमें सबसे ताजा मामला दिल्ली के लाल किले के पास हुए भयंकर बम ब्लास्ट का है। इस बम ब्लास्ट में एक दर्जन से ज्यादा लोगों के मरने और दो दर्जन से ज्यादा लोगों के घायल होने के बाद हुई जांच में एक हैरान करने वाला पैटर्न सामने आया है, जिनमें कुछ दहशतगर्द डॉक्टर्स के जुड़े होने से मामला बहुत ही बदल गया।

केमिकल वेपन डॉक्टर्स के द्वारा हमलों की योजना बनाने, फंडिंग जुटाने या तकनीकी मदद देने से पूरा देश आश्चर्य में पड़ गया। क्योंकि जिन डॉक्टर्स को लोग आंख बंद करके भगवान का दूसरा रूप मानते हैं, और उन्हें जीवन बचाने वाला समझते हैं, उन्हें डॉक्टर्स के भेष में ऐसेे दहशतगर्द निकलेंगे ये किसी ने नहीं सोचा था। लेकिन इन डॉक्टर्स में से कुछ ने अपना जमीर इस तरह बेच दिया कि पैसे के लिए देश के खिलाफ ही अपनी केमिस्ट्री, बायोलॉजी और फार्माकोलॉजी की ट्रेनिंग में सीखे गए रासायनिक प्रयोगों से खतरनाक हथियार और विस्फोटक बनाने में इस्तेमाल किया, जो बड़े अफसोस की बात है। दिल्ली के लाल किला के पास 2000, 2002 और 2005 ऐसी घटनाओं को अंजाम दिया गया है।

और अब 2025 में ऐसी दिल दहलाने वाली घटना को दहशतगर्दों ने अंजाम दे डाला। ये सब घटनाओं के अलावा 2006 मुंबई ट्रेन ब्लास्ट, इंडियन मुजाहिदीन के कई हमले, आईएसआईएस के भारतीय मॉड्यूल और हाल के पुणे-बेंगलुरु आईएसआईएस मॉड्यूल तक के हमलों में डॉक्टर्स का नाम बार-बार जुड़ता रहा है। यह कोई संयोग नहीं है; यह एक व्यवस्थित और खतरनाक ट्रेंड है, जो कि डॉक्टर्स के भेष में शैतानों को छिपाए हुए नजर आता है।
25 दिसंबर 2000 को लाल किले के बाहर हुए बम धमाके में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था। इस मामले में गिरफ़्तार किए गए कई आतंकियों में कश्मीरी मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स शामिल थे। 2002 और फिर 2005 में लाल किले के आसपास हुए सीरियल ब्लास्ट में भी पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के साथ-साथ स्थानीय मेडिकल प्रोफेशनल्स की भूमिका सामने आई। इन हमलों में अमोनियम नाइट्रेट, आरडीएक्स और केमिकल बूस्टर का इस्तेमाल हुआ था। जांच एजेंसियों ने पाया कि कुछ आरोपी डॉक्टर्स केमिकल मिक्सिंग और टाइमर सर्किट बनाने में मदद कर रहे थे। उस समय इसे अलग-थलग घटना माना गया, लेकिन आज देखें तो यह एक लंबी शृंखला की पहली कड़ी थी। इसी तरह 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सात सीरियल धमाकों में 209 लोग मारे गए थे। इनमें प्रेशर कुकर बमों में आरडीएक्स के साथ-साथ अमोनियम नाइट्रेट और फ्यूल ऑयल का मिश्रण इस्तेमाल हुआ था। एनआईए और एटीएस की जांच में सामने आया कि इंडियन मुजाहिदीन के कई प्रमुख सदस्य मेडिकल बैकग्राउंड से थे। इनमें सबसे चर्चित नाम एमबीबीएस डॉक्टर शाहनवाज आलम का था, जो इंडियन मुजाहिदीन के लिए बम बनाने का काम करता था।
25 दिसंबर 2000 को लाल किले के बाहर हुए बम धमाके में लश्कर-ए-तैयबा का हाथ था। इस मामले में गिरफ़्तार किए गए कई आतंकियों में कश्मीरी मेडिकल स्टूडेंट्स और डॉक्टर्स शामिल थे। 2002 और फिर 2005 में लाल किले के आसपास हुए सीरियल ब्लास्ट में भी पाकिस्तानी आतंकी संगठनों के साथ-साथ स्थानीय मेडिकल प्रोफेशनल्स की भूमिका सामने आई। इन हमलों में अमोनियम नाइट्रेट, आरडीएक्स और केमिकल बूस्टर का इस्तेमाल हुआ था। जांच एजेंसियों ने पाया कि कुछ आरोपी डॉक्टर्स केमिकल मिक्सिंग और टाइमर सर्किट बनाने में मदद कर रहे थे। उस समय इसे अलग-थलग घटना माना गया, लेकिन आज देखें तो यह एक लंबी शृंखला की पहली कड़ी थी।
डॉक्टर्स का एक बहुत बड़ा हिस्सा आज भी इंसानियत की सेवा कर रहा है, लेकिन कुछ मुट्ठी भर लोग पूरे प्रोफेशन को बदनाम कर रहे हैं और देश को अंदर से खोखला करने की कोशिश कर रहे हैं। इनके खिलाफ़ जितनी जल्दी सख्त कदम उठेंगे, उतना ही सुरक्षित रहेगा हमारा देश। उसके साथी डॉ. अरशद वानी और कई अन्य मेडिकल स्टूडेंट्स पाकिस्तान में ट्रेनिंग लेकर आए थे। ये लोग अस्पतालों की लैब और फार्मेसी का इस्तेमाल केमिकल हथियारों के प्रयोग के लिए कर रहे थे। 2008 के बाद इंडियन मुजाहिदीन ने अहमदाबाद, दिल्ली, बेंगलुरु, जयपुर और पुणे में सीरियल ब्लास्ट किए। इनमें से अधिकांश में अमोनियम नाइट्रेट + एल्यूमिनियम पाउडर + ऑयल और केमिकल इग्नाइटर का इस्तेमाल हुआ। हिजबुल मुजाहिदीन के तकनीकी विंग में डॉक्टर्स की भरमार थी। इसके अलावा अहमदाबाद ब्लास्ट केस में एमबीबीएस डॉक्टर मोहम्मद सादिक इसरार अहमद, कश्मीरी डॉक्टर और आईएम का कोर मेंबर डॉ. अबू राशिद और भटकल ब्रदर्स का करीबी व मेडिकल बैकग्राउंड डॉ. रियाज़ भटकल जैसे लोग शामिल थे। इन लोगों ने अपनी मेडिकल पढ़ाई के दौरान सीखी गई ऑर्गेनिक केमिस्ट्री और फार्माकोलॉजी का इस्तेमाल ना सिर्फ़ विस्फोटक बनाने में किया, बल्कि ज़हर (पोटैशियम सायनाइड) और जैविक हथियारों के प्रयोग की योजना भी बनाई थी। 2014 में रांची में पकड़े गए IM मॉड्यूल में भी दो एणबीबीएस डॉक्टर्स मिले थे, जो केमिकल जिहाद की ट्रेनिंग ले रहे थे।


2016 के बाद आईएसआईएस ने भारत में अपने मॉड्यूल बनाए। इनमें भी डॉक्टर्स का प्रतिशत असामान्य रूप से ज्यादा था। केरल मॉड्यूल और एमहीहीए सर्जन डॉ. आदिल डॉ. रियाज़ भटकल, अल-हिंद मॉड्यूल लखनऊ और एमबीबीएस गोल्ड मेडलिस्ट डॉ. हारिस फारूकी, पुणे आईएसआईएस मॉड्यूल डॉ. सैफी और डॉ. कासिम निकले और ये दोनों 2023-24 में गिरफ़्तार किए गए।
2023 में पुणे से पकड़े गए आईएसआईएस मॉड्यूल में दो डॉक्टर्स (एक एमबीबीएस और एक बीडीएस) ने घर में ही मदर ऑफ सैतान ट्राईएसेटोन ट्राईपेरोक्साइड नामक खतरनाक केमिकल विस्फोटक बनाया था। ट्राईएसेटोन ट्राईपेरोक्साइड को ही 2005 लंदन बॉम्बिंग, 2015 पेरिस अटैक और 2016 ब्रसेल्स अटैक में इस्तेमाल किया गया था। ये डॉक्टर्स डार्क वेब से केमिकल फॉर्मूला डाउनलोड कर रहे थे और अस्पताल की लैब में प्रैक्टिस करते थे।
पिछले दो दशकों में भारत में कई आतंकी हमलों में एक हैरान करने वाला पैटर्न सामने आया है, इनमें से कई हमलों की योजना बनाने, फंडिंग जुटाने या तकनीकी मदद देने में मेडिकल प्रोफेशनल्स (डॉक्टर्स और मेडिकल स्टूडेंट्स) की भूमिका रही है। 11 जुलाई 2006 को मुंबई की लोकल ट्रेनों में हुए सात सीरियल धमाकों में 209 लोग मारे गए थे। इनमें प्रेशर कुकर बमों में आरडीएक्स के साथ-साथ अमोनियम नाइट्रेट और फ्यूल ऑयल का मिश्रण इस्तेमाल हुआ था। एनआईए और एटीएस की जांच में सामने आया कि इंडियन मुजाहिदीन  के कई प्रमुख सदस्य मेडिकल बैकग्राउंड से थे। इनमें सबसे चर्चित नाम था, डॉ. शाहनवाज़ आलम जो आईएम का बम बनाने वाला एक्सपर्ट था। उसके साथी डॉ. अरशद वानी और कई अन्य मेडिकल स्टूडेंट्स पाकिस्तान में ट्रेनिंग लेकर आए थे। ये लोग अस्पतालों की लैब और फार्मेसी का इस्तेमाल केमिकल हथियारों के प्रयोग के लिए कर रहे थे। और अब दिल्ली में जिस तरह से डॉक्टर्स के काले कारनामों ने एक और बम ब्लास्ट को अंजाम दिया है, उससे समाज में अच्छे डॉक्टर्स को भी शर्मसार किया है, जो मरीजों को ठीक करने के लिए दिन-रात लगे रहते हैं और जनसेवा को ही अपना धर्म समझते हैं।
लेकिन सरकार को इस तरफ ध्यान देना होगा कि कुछ बुरे डॉक्टर्स, जो कि असल में देश के साथ गद्दारी करते हुए सानियत को तार-तार करने का काम कर रहे हैं, उन्हें गिरफ्तार किया ज़रूर जाना चाहिए। और इसमें वो डॉक्टर अपनी अहम भूमिका निभा सकते हैं, जो समाज की सेवा करने पर ही अपना फोकस करते हैं। क्योंकि आतंकवादी सोच के डॉक्टर्स और दूसरे लोगों के खिलाफ़ जितनी जल्दी सख्त कदम उठेंगे, उतना ही हमारा देश सुरक्षित रहेगा। इस पर हम यह भी कह सकते हैं कि कहाँ हमारे डॉक्टर APJ अब्दुल कलाम और कहाँ यह आतंकी डॉक्टर्स  जो अपने ही देश को बर्बाद करने में तुले हैं।

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