सवाल तो हवा में तैर रहे हैं लेकिन इन सवालों का उत्तर किस से तलाश करें ,सिर्फ दो लोग हैं जो इन सवालों के जवाब दे सकते हैं। एक तो कार्यपालिका और विधायिका के सर्वोच्च नेता श्री नरेंद्र मोदी और दूसरे न्यायपालिका के सारे सम्मानित सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश जिन्हें हम मुख्य न्यायाधीश के रूप में संबोधित कर सकते हैं..
जब से चुनाव आयोग ने नेता विरोधी दल लोकसभा से अपने आरोपों के समर्थन में हलफनामा देने की बात कही है तब से यह सवाल देश के लोगों के मन में गंभीर रूप से उठ रहा है, क्या आगे से जो पीड़ित है जो दमन का शिकार है, जो वंचित है, जो शोषण से पीड़ित है, जब वह थाने में रिपोर्ट लिखाने जाए तो क्या भविष्य में उसे यह कहा जाएगा कि उसके साथ जो भी हुआ है पहले वह उसका शपथ पत्र लेकर आए तब उसकी प्राथमिक की दर्ज की जाएगी, यह संविधान का एक नया भाष्य है … आज जो भी चुनाव आयोग कर रहा है कल वही नजीर बनकर कानून बन सकता है। सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश क्या इसे संविधान संवत मानते हैं? अगर मानते हैं तो हमें मनाना चाहिए कि भारत के इस लोकतंत्र की या संविधान की नई नामावली क्या होगी, इसका अनुमान लगाना प्रारंभ कर दें।
इस देश में हजारों ऐसे उदाहरण है जिसमें व्यक्ति जिंदा है लेकिन कागजों में उसे मृत बता दिया गया है, यही बात मंगलवार को सर्वोच्च न्यायालय में रखी गई जिसमें दो ऐसे व्यक्ति प्रस्तुत किए गए जो चुनाव आयोग की सूची में मित्र दिखाए गए हैं लेकिन वह जीवित हैं। इस पर टिप्पणियां आ रही है के उन दो लोगों को चुनाव आयोग की सूची में शामिल कर देना चाहिए इसके लिए इतनी हाय तौबा मचाने की क्या जरूरत है.. पर ऐसे केस तो लाखों की तादाद में मिलेंगे. इस सूची का सत्यापन जो लोग करेंगे क्या वह ईमानदारी से करेंगे? इन सवालों का जवाब चुनाव आयोग के मुख्य चुनाव आयुक्त नहीं दे रहे हैं, वह पूरी तरह खामोश है, एक राष्ट्रीय दल
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