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आत्मघाती चूक- पहलगाम आतंकी हमले से उठ खड़े हुए कई सवाल | Pavitra India

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https://tehelkahindi.com/wp-content/uploads/2025/05/पहलगाम-आतंकी-हमले-में-मारे-गये-लोगों-को-श्रद्धांजलि-देते-गृहमंत्री-अमित-शाह-1024x577.jpg

इंट्रो- पहलगाम में आतंकी हमले में 26 लोगों के नरसंहार ने भारत में ग़ुस्सा पैदा किया है। यह ग़ुस्सा आतंकियों और पाकिस्तान के ख़िलाफ़ तो है ही, केंद्र सरकार के ख़िलाफ़ भी है, जिस पर सुरक्षा में लापरवाही का आरोप लगाया जा रहा है। सीमा पर इस बड़ी घटना के बाद तनाव है। इस घटना के बाद मोदी सरकार की कश्मीर नीति पर भी सवाल उठे हैं। बता रहे हैं वरिष्ठ पत्रकार राकेश रॉकी :-

क्या कश्मीर में सब कुछ सामान्य है? क्या ऐसा दिखाने की केंद्र सरकार की ज़िद ने कश्मीर में नरसंहार की बड़ी घटना को अंजाम देने के आतंकवादियों के मंसूबों को बल दिया? जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 निरस्त करने के बाद सूबे में कई पर्यटन स्थलों को सैलानियों के लिए खोलने का फ़ैसला केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लिया था, जिनमें 60 ऐसे थे, जहाँ उचित सुरक्षा व्यवस्था नहीं थी या वे सुरक्षा की दृष्टि से बेहद संवेदनशील थे। पहलगाम के जिस बैसरन पिकनिक स्पॉट पर आतंकियों ने 25 सैलानियों और एक स्थानीय नागरिक की हत्या का ख़ूनी खेल खेला, वहाँ से कुछ समय पहले सीआरपीएफ को हटा लिया गया था। इसका फ़ैसला किस स्तर पर किसने किया? यह भी एक बड़ा सवाल है। घाटी के मुसलमान भी आतंक की इस घटना के ख़िलाफ़ उठ खड़े हुए। निश्चित ही पहलगाम का बैसरन आतंकी हमला सुरक्षा और रणनीति की बड़ी चूक का नतीजा है, जहाँ घटना के बाद सुरक्षा बलों को पहुँचने में ही डेढ़ से दो घंटे का लम्बा वक़्त लग गया। यह घटना ऐसे समय में हुई है, जब अमेरिका के उप राष्ट्रपति जेडी वेन्स भारत के दौरे पर थे। इस घटना ने न सिर्फ़ भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव बना दिया है, बल्कि चीन ने पाकिस्तान को जे-10सी और जेएफ-17 लड़ाकू विमान देने की घोषणा कर तनाव को और हवा दे दी है। तनाव की स्थिति यह है कि भारत ने सिंधु जल समझौता निलंबित करने सहित कुछ फ़ैसले किये हैं, तो पाकिस्तान ने शिमला समझौते को रद्द करने की घोषणा की है।

जानकारी के मुताबिक, पहलगाम आतंकी नरसंहार के बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह जब श्रीनगर पहुँचे थे, तो एक बैठक में उच्चाधिकारियों ने उन्हें बताया था कि कश्मीर में अनुच्छेद-370 ख़त्म होने के बाद पर्यटकों के लिए खोले गये 63 ऐसे स्थल हैं, जो असुरक्षित हैं और वहाँ सुरक्षा के पुख़्ता इंतज़ाम नहीं। शाह को अधिकारियों ने बैठक में सुझाव दिया कि पहलगाम हमले को देखते हुए इन स्थलों को पर्यटकों की आवाजाही के लिए बंद कर देना चाहिए। सूत्रों के मुताबिक, घाटी में आतंकी हमले के ख़तरे को लेकर भी इनपुट्स केंद्र को भेजे गये थे। हालाँकि यह माना जाता है कि मोदी सरकार ऐसा करने में हिचक रही थी; क्योंकि वह लम्बे समय से यह दावा कर रही है कि कश्मीर में अब स्थिति सुधर चुकी है और इस दु:ख की घड़ी में बैसरन का संदेश एक नये अध्याय की शुरुआत का संकेत हो सकता है।

निश्चित ही पहलगाम आतंकी हमले ने देश को हिलाकर रख दिया है। आतंकवादियों और उनके आकाओं के ख़िलाफ़ देश की जनता में जबरदस्त ग़ुस्सा है। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ कार्रवाई का दबाव बन रहा है। बहुत-से उग्र गुटों ने मुसलमानों के ख़िलाफ़ प्रदर्शन किया है। इस दु:खद घटना का सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि इसमें देश के ही एक पक्ष की तरफ़ से हिन्दू-मुस्लिम का नैरेटिव बनाने की भरपूर कोशिश हो रही है। कहा यह गया कि आतंकवादियों ने पर्यटकों की हत्या करने से पहले सभी का धर्म पूछा था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि किसी ख़ास मक़सद से जब ऐसा ख़ूनी खेल खेला जाता है, तब इन घटनाओं के पीछे खड़े लोग एक रणनीति बनाकर यह नापाक तरीक़े अपनाते हैं, जिससे समाज में अफ़रा-तफ़री मचे।

जनता में मोदी सरकार के ख़िलाफ़ भी बहुत नाराज़गी है; क्योंकि यह ज़ाहिर हो गया है कि जहाँ सैलानियों की इतनी भीड़ जुट रही थी, वहाँ एक भी जवान सुरक्षा में तैनात नहीं था। आतंकी हमले में जान गँवाने वालों के रिश्तेदारों के जो वीडियो सामने आये हैं, उनसे भी ज़ाहिर होता है कि घटनास्थल पर सुरक्षा के नाम पर कुछ भी नहीं था। ऐसा क्यों हुआ, इसके लिए केंद्रीय गृह मंत्रालय की ज़िम्मेदारी बनती है। जम्मू-कश्मीर एक केंद्र शासित प्रदेश है और वहाँ सुरक्षा की सारी ज़िम्मेदारी सीधे गृह मंत्रालय की है। यह घटना केंद्र सरकार के सबसे बड़े सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल की रणनीति की नाकामी की तरफ़ भी इशारा करती है, जो मोदी सरकार में देश और देश से बाहर की सुरक्षा नीति में बड़ा रोल निभा रहे हैं।

हाल के महीनों में जम्मू के सीमान्त ज़िलों राजौरी, पुंछ, किश्तवाड़ आदि में आतंकियों की घुसपैठ और हमलों की कई घटनाएँ हुई थीं जिससे सुरक्षा इंतज़ाम और चौकस करने की सख़्त ज़रूरत थी। यहीं से आतंकी कश्मीर पहुँचते हैं। यह रिपोर्ट्स सामने आ रही थीं कि इन इलाक़ों के घने जंगलों में आतंकियों ने अपने ठिकाने बना लिये हैं। पीरपंजाल का यह इलाक़ा बहुत सघन है और कश्मीर को यहीं से रास्ता भी जाता है। हाल में यह जानकारी भी सामने आयी है कि पाकिस्तान सेना और आईएसआई के सहयोग से आतंकियों को अब गुरिल्ला ट्रेनिंग दी जा रही है। स्थानीय युवाओं की आतंकी घटनाओं में भागीदारी कम हुई है और विदेशी आतंकी यह काम ज़्यादा कर रहे हैं।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, सरकार के जम्मू-कश्मीर में आतंकियों की कमर तोड़ने के दावों के विपरीत और अनुच्छेद-370 ख़त्म करने के फ़ैसले को इसका श्रेय देने के बावजूद इस सरहदी सूबे में अभी भी 100 से 125 के बीच आतंकी सक्रिय हैं, जिनमें 85 फ़ीसदी विदशी आतंकी हैं। यह स्थिति तब है, जब अभी भी कश्मीर में सामान्य से कहीं अधिक सैन्य बल मौज़ूद हैं। ऐसे में यह गंभीर सवाल उठता है कि पहलगाम के जिस पिकनिक स्पॉट पर आतंकियों ने ख़ूनी खेल खेला वहाँ सुरक्षा के लिए एक भी जवान तैनात नहीं था। क्यों? सरकार को इसका जवाब देना चाहिए।

कहना होगा कि आतंकवादी और उनके आका अपने मक़सद में सफल रहे, क्योंकि पहलगाम की घटना के बाद टीवी चैनलों से लेकर सोशल मीडिया तक में सुरक्षा तंत्र की बड़ी चूक और नाकामी पर सवाल उठाने की जगह हिन्दू-मुस्लिम वाला नैरेटिव चला दिया गया। इस घटना के बाद चुनावी राज्य बिहार पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान और हमले के ज़िम्मेदार आतंकियों को चेताया, तो नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी आतंकवादी घटना में घायल लोगों के हाल जानने कश्मीर पहुँचे। गृह मंत्री अमित शाह ने घटना वाले दिन ही श्रीनगर में अधिकारियों से स्थिति की जानकारी ली। दिल्ली में इसके बाद सर्वदलीय बैठक भी इस घटना को लेकर हुई, जिसमें कांग्रेस सहित पूरी विपक्ष ने सुरक्षा में लापरवाही का सवाल खड़ा किया साथ ही सरकार को आश्वस्त किया कि विपक्ष उसके साथ खड़ा है और वह जो भी फ़ैसला करेगी, उसका समर्थन रहेगा।

रोज़गार पर हमला– इसमें कोई दो-राय नहीं कि कश्मीर घाटी में सैलानियों की संख्या बढ़ने से यदि कोई सबसे ज़्यादा ख़ुश थे, तो वे स्थानीय कश्मीरी मुस्लिम थे, जिनकी रोज़ी-रोटी का सबसे बड़ा ज़रिया ही पर्यटक हैं। ऐसे में इस घटना ने इन कश्मीरी मुसलमानों को भी गहरा ज़$ख्म दिया है। यही कारण रहा कि यह मुस्लिम खुलकर दहशतगर्दों के ख़िलाफ़ आये हैं और अपना ग़ुस्सा ज़ाहिर कर रहे हैं। घटना वाले दिन भी कश्मीरी मुसलामानों ने आतंकी हमले के दौरान कई पर्यटकों की जान बचाने में बड़ी भूमिका अदा की और ख़ुद की जान ख़तरे में डाली। आतंकियों ने पर्यटकों की जान बचाने की कोशिश करने पर ऐसे ही एक स्थानीय मुस्लिम सईद आदिल हुसैन शाह पर गोलियों की बोछार कर दी, जिससे आदिल की मौत हो गयी।

इस हमले से लम्बे समय से आतंकवाद की मार झेल रहे कश्मीर में फिर से पर्यटकों के आने से रोज़गार के जो रास्ते खुले थे, फ़िलहाल उन पर संकट के बादल छाये हुए समझो। यह घटना स्थानीय लोगों के लिए आर्थिक रूप से बहुत नुक़सानदेह साबित हुई है। यही कारण रहा कि उन्होंने खुलकर दहशतगर्दी के ख़िलाफ़ आवाज़ उठानी शुरू कर दी है। कश्मीर में इस घटना के बाद पाकिस्तान के ख़िलाफ़ भी जबरदस्त माहौल बना है, जो कश्मीरियों के हक़ के लिए लड़ने का ढोंग करता रहता है। कश्मीर में लोग समझ चुके हैं कि पाकिस्तान कभी भी उनका हितेषी नहीं था, न कभी होगा। कश्मीर के नाम पर उसके नेता सिर्फ़ यहाँ के लोगों को बरगलाने की कोशिश करते हैं।

हाल के महीनों में कश्मीर में पर्यटकों की संख्या बढ़ी थी; क्योंकि केंद्र सरकार लगातार दावे कर रही थी कि वहाँ माहौल अब सुधर चुका है, आतंकवाद की कमर तोड़ी जा चुकी है और शान्ति लौट चुकी है। लेकिन जम्मू रीज़न में जिस तरह हाल के महीनों में आतंकी हमले हुए थे, उन्हें देखकर साफ़ लग रहा था कि सरकार का दावा सही नहीं है। दुनिया को दिखाने के लिए भले सरकार ने शान्ति का ढोल पीटा हो, ज़मीनी हक़ीक़त वैसी नहीं थी। इस बड़ी घटना से पहले कश्मीर के भीतर भी आतंकी घटनाएँ हो रही थीं। भले छोटे स्तर पर थीं। ऐसे में कश्मीर के पर्यटन स्थलों को आतंकियों की चरागाह के रूप में खुला छोड़ देना बहुत नासमझी भरा क़दम था। जिन जगहों को सैलानियों के लिए खोला गया, उनमें 60 को संवेदनशील माना गया था। लेकिन वहाँ सुरक्षा का इंतज़ाम न करना केंद्र सरकार की भयंकर भूल थी, जिसकी क़ीमत 26 भारतीयों को अपनी जान गँवा कर चुकानी पड़ी।

पहलगाम की घटना के बाद कश्मीर जाने की रफ़्तार एकदम ढीली पड़ गयी। हज़ारों लोगों ने अपनी बुकिंग रद्द कर दी है, जबकि जिन्हें कुछ और दिन कश्मीर में रुकना था, वे तुरंत कश्मीर वापस चले गये हैं। एयरलाइन्स सूत्रों के मुताबिक, पहलगाम घटना के बाद आनन-फ़ानन में सैकड़ों पर्यटकों ने वापसी के लिए टिकट ख़रीदे हैं। जानकारों के मुताबिक, इस एक घटना ने कश्मीर में जाने वालों का भरोसा डिगा दिया है और इसे बहाल करने में लम्बा वक़्त लग जाएगा।

सूत्रों के मुताबिक, पहलगाम हमले के बाद ख़तरे को देखते हुए केंद्र सरकार ने 29 अप्रैल को ज़्यादा संवेदनशील 48 पर्यटक स्थलों को सैलानियों के लिए बंद कर दिया है। इनमें श्रीनगर की मशहूर डल झील भी है।

हिन्दू-मुस्लिम नैरेटिव– इस दु:खद घटना का सबसे शर्मनाक पहलू यह रहा कि इसमें देश के ही एक पक्ष की तरफ़ से हिन्दू-मुस्लिम का नैरेटिव बनाने की भरपूर कोशिश हुई। कहा यह गया कि आतंकवादियों ने पर्यटकों की हत्या करने से पहले सभी का धर्म पूछा था। इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है; क्योंकि किसी ख़ास मक़सद से जब ऐसा ख़ूनी खेल खेला जाता है तब इन घटनाओं के पीछे खड़े लोग एक रणनीति बनाकर यह नापाक तरीक़े अपनाते हैं, ताकि समाज में अफ़रा-तफ़री मचे। कहना होगा कि आतंकवादी और उनके आका अपने मक़सद में सफल रहे। क्योंकि पहलगाम की घटना के बाद गोदी पत्रकारों ने टीवी चैनलों, अख़बारों से लेकर सोशल मीडिया तक पर सवाल उठाने और यह बताने की जगह कि यह सुरक्षा तंत्र की बड़ी चूक और नाकामी है; धर्म वाला नैरेटिव चला दिया। इस घटना के बाद चुनावी राज्य बिहार पहुँचे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पाकिस्तान को चेताया, तो नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी अमेरिका की यात्रा अधूरी छोड़ आतंकवादी घटना में घायल हुए लोगों से मिलने कश्मीर के अस्पतालों में पहुँचे।

यह बहुत आश्चर्यजनक है कि कश्मीर में आतंकवाद की कोई भी वारदात होने के बाद उसमें धर्म खोजने वाले बहुत-से नफ़रती तत्त्व सामने आ जाते हैं। सच यह है कि कश्मीर में सन् 1989 में जबसे आतंकवाद शुरू हुआ, वहाँ सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 2025 तक क़रीब 43,000 लोगों (ग़ैर-सरकारी आँकड़ों के मुताबिक 60,000) लोगों की मौत हुई है। इस दौरान छितिसिंह पुरा में सिखों के नरसंहार की घटना हुई और घाटी से बड़े पैमाने पर कश्मीरी पंडितों का पलायन भी हुआ। इस दौरान जो लोग मारे गये उनमें 85 फ़ीसदी संख्या मुसलमानों की है। इसमें कोई दो-राय नहीं कि आतंकवाद में सबसे ज़्यादा पीड़ित कश्मीर रहा, जिसने वहाँ शिक्षा, स्वास्थ्य के ढाँचे को ख़त्म कर दिया। असंख्या लोगों की बलि ले ली और रोज़गार के रास्ते बंद कर दिये। जान के क़ीमत सभी इंसानों की सामान है; लेकिन इस तथ्य को कैसे नज़रअंदाज़ किया जा सकता है कि सूबे में आतंकवाद के सबसे बड़ी क़ीमत मुसलमानों ने चुकायी है।

पहलगाम की घटना के बाद भी हिन्दू-मुस्लिम नैरेटिव बनाने की कोशिश हुई। बनाया भी गया। लेकिन किसी ने यह नहीं सोचा कि इस घटिया राजनीतिक एजेंडे से हासिल क्या हुआ? आतंकवादियों ने पर्यटकों को मारने के लिए हिन्दुओं को निशाना बनाया यह उनकी और उनके आकाओं की चाल थी। जानबूझकर धर्म पूछा गया और महिलाओं से कहा गया कि जाकर मोदी को बता देना, ताकि स्थानीय लोगों और अन्य के बीच धर्म के नाम पर विभाजन पैदा किया जाए। कहा जाता है कि यदि आप लोगों को हज़ार कोशिश करके भी बाँट नहीं पा रहे हों, तो उनके बीच धर्म को लेकर आ जाओ। फिर देखो कैसे चिंगारी भड़कती है। पहलगाम के घटना के बाद भी यह कोशिश हुई और इसके पीछे राजनीति करने वाले भी कम नहीं थे।

लापरवाही कहाँ– कश्मीर में सैलानियों के लिए ख़तरा होने के बावजूद उन्हें ऐसी जगह जाने से किसी ने नहीं रोका जहाँ जाना ख़तरनाक हो सकता था। महाराष्ट्र से लेकर दूसरे राज्यों तक के टूर ऑपरेटरों को यह पता था कि पहलगाम की बैसरन घाटी में सैलानियों को भेजकर पैसा बनाया जा सकता है। प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था में बैठे लोगों को क्यों नहीं जानकारी थी कि एक ऐसे इलाक़े में रोज़ सैकड़ों पर्यटक आ रहे हैं, जहाँ जाने में ख़तरा है। एक ऐसी जगह जहाँ एक भी सुरक्षाकर्मी नहीं था, वहाँ सुरक्षा एजेंसियों और प्रशासन की नाक के नीचे रोज़ सैकड़ों पर्यटक जुट रहे थे। बैसरन में एक भी सुरक्षाकर्मी का न होना इसलिए भी आश्चर्यजनक है; क्योंकि हमले से कुछ दिन पहले ही भाजपा सांसद निशिकांत दुबे गुलमर्ग में अपने जन्मदिन पर पारिवारिक पार्टी का आयोजन कर रहे थे और उस समय वहाँ निजी पार्टी होने के बावजूद बड़ी संख्या में सुरक्षाकर्मियों को तैनात किया गया था। ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, पिछले कुछ हफ़्तों से बैसरन पिकनिक स्पॉट पर हर रोज़ 1800 से 2100 पर्यटक पहुँच रहे थे। लेकिन इसके बावजूद किसी ने यह चिन्ता नहीं की, कि वहाँ सुरक्षा के इंतज़ाम किये जाएँ।

जिस पिकनिक स्पॉट पर यह घटना हुई घास का वह मैदान कंटीली बाड़ से घिरा है। यही नहीं, भीतर जाने के लिए 30 रुपये का शुल्क अदा करना होता है, तभी कोई लोहे के गेट से भीतर जा सकता है। सवाल है कि जब आतंकी गेट से भीतर गये होंगे, तो क्या वहाँ बैठे लोगों को शक नहीं हुआ होगा? घटना के बाद इस मैदान में सैलानियों के शव ख़ून से लथपथ पड़े थे। आतंकियों की गोलियों का शिकार सभी पुरुष हुए। ख़ूनी खेल खेलकर आतंकी भागने में सफल हो गये; क्योंकि वहाँ सुरक्षा दस्ते का एक भी जवान नहीं था। घायल सुरक्षा और मदद की गुहार लगा रहे थे। स्थानीय लोगों, जिनमें ज़्यादातर दुकानदार या टट्टू वाले थे; ने घायलों को पीठ पर लादकर पहाड़ी से नीचे सुरक्षित जगहों पर पहुँचाया। घटनास्थल पर सेना या सुरक्षा जवान डेढ़ घंटे बाद पहुँचे। तब तक जिन घायलों के बचने की कोई सम्भावना थी भी, उनकी भी साँसें उखड़ चुकी थीं।

‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, जहाँ इतनी बड़ी वारदात हुई, वहाँ से केंद्रीय रिज़र्व पुलिस फोर्स (सीआरपीएफ) का शिविर छ: किलोमीटर दूर है। पुलिस स्टेशन तो और भी दूर लिद्दर में है, जबकि सेना का शिविर तो पहलगाम बाज़ार के नज़दीक है; जो घटनास्थल से काफ़ी दूर है। यही कारण रहा कि सुरक्षा से जुड़े जवानों को घटना के बाद वहाँ पहुँचाने में ज़्यादा वक़्त लगा। घटनास्थल पर कहें कोई सीसीटीवी है; इसकी पुष्टि नहीं होती।

सवाल यह है कि गृह मंत्रालय और इन मामलों में इनपुट देने वाली उसकी एजेंसी आईबी (गुप्तचर ब्यूरो) क्यों यह मान बैठे थे कि इस इलाक़े में आतंकी ख़तरा नहीं है? सच तो यह है कि किश्तवाड़ और पीरपंचाल से घाटी में जाने पर यही इलाक़ा सबसे पहले आता है। बेशक केंद्र सरकार ने ढके छिपे शब्दों में लापरवाही होने की बात स्वीकार की है; लेकिन सवाल यह है कि क्या इससे उन लोगों की ज़िन्दगी वापस लायी जा सकती है? जो आपके सुरक्षा इंतज़ामों के दावों पर भरोसा करके वहाँ घूमने गये? ‘तहलका’ की जानकारी के मुताबिक, कोकरनाग के पास घने जंगलों के बाद मैदानी इलाक़ा पड़ता है, जो किश्तवाड़ की तरफ़ फैला हुआ है। चूँकि इन जंगलों में अप्रैल में ही एक मुठभेड़ में जेईएम के तीन विदेशी आतंकी मरे गये थे, वहाँ सतर्कता की सख़्त ज़रूरत थी। लेकिन यह मान लिया गया कि अब कोई ख़तरा नहीं।

सुरक्षा एजेंसियों को इस बात की जानकारी थे, हाल के चार-पाँच वर्षों में इन इलाक़ों में आतंकियों ने अपनी स्थिति मज़बूत की है। ऐसे में पहलगाम हमले को साफ़तौर पर सुरक्षा की गंभीर चूक के रूप में देखा जाना चाहिए। पाकिस्तान आतंकियों की मदद करता है; यह किसी से छिपी बात नहीं है। लिहाज़ा उसको कोसने के साथ साथ अपना सुरक्षा तंत्र मज़बूत करना ज़रूरी नहीं है क्या? पर्यटकों की सामूहिक हत्या की यह घटना निश्चित ही पहली बड़ी घटना है। सन् 1995 से लेकर अब तक इन इलाक़ों में 68 पर्यटक आतंकियों की गोलियों का शिकार हुए हैं।

राजनीतिक असर– पहलगाम में हमले के बाद बेशक कांग्रेस सहित विपक्ष ने सरकार के साथ हर क़दम पर खड़ा होने की बात कही है। हालाँकि साथ ही उसे सरकार की कश्मीर नीति और वहाँ सुरक्षा रणनीति पर सवाल उठाने का भी मौक़ा मिल गया है। सर्वदलीय बैठक में नेता प्रतिपक्ष राहुल गाँधी ने इसे लेकर सवाल भी उठाये। उन्होंने इस बात पर हैरानी जतायी कि इतनी महत्त्वपूर्ण बैठक में शामिल होने की जगह प्रधानमंत्री मोदी ने बिहार जाने को तरजीह दी। उधर पहलगाम हमले से भाजपा के भीतर चल रही उठापटक पर फ़िलहाल विराम लग गया है। यह माना जा रहा है कि आरएसएस लगातार दबाव बनाये हुए है कि भाजपा अध्यक्ष उसकी पसंद का बनेगा। पिछले लम्बे समय से इस पर आरएसएस और भाजपा नेतृत्व के बीच खींचतान चली हुई है। फ़िलहाल अब नया भाजपा अध्यक्ष बनाने में देरी हो सकती है। यही नहीं, यह कयास भी लगाये जा रहे हैं कि आरएसएस केंद्र सरकार में नेतृत्व परिवर्तन पर ज़ोर दे रहा है और चाहता है कि सितंबर तक नया प्रधानमंत्री बने। फ़िलहाल इन सभी चीज़ों पर विराम लग गया है। ये आरोप लग रहे हैं कि पहलगाम हमले को हिन्दू-मुस्लिम रंग देने के पीछे वास्तव में भाजपा के ही लोग थे, ताकि बिहार चुनाव में इसका फ़ायदा लिया जाए। लेकिन जनता में इस घटना के बाद मोदी सरकार के ख़िलाफ़ भी ग़ुस्सा उभरा है, जिससे दावा नहीं किया जा सकता कि आतंकी हमले का लाभ ही मिलेगा; नुक़सान भी हो सकता है।

मोदी सरकार में हुए बड़े आतंकी हमले

उड़ी हमला : 18 सितंबर, 2016 को कश्मीर के उड़ी सेक्टर में एलओसी के पास भारतीय सेना के शिविर पर हमला। इसमें 19 जवान शहीद हो गये।

पठानकोट हमला : 02 जनवरी, 2016 को पंजाब के पठानकोट एयरबेस पर हमला। इसमें सात सुरक्षाकर्मी शहीद और 20 अन्य घायल हुए। चार आतंकी मारे गये।

अमरनाथ यात्रियों पर हमला : 10 जुलाई, 2017 को अमरनाथ जा रहे श्रद्धालुओं पर अनंतनाग ज़िले में आतंकी हमले में सात लोगों की मौत।

पुलवामा हमला : आतंकियों ने 14 फरवरी, 2019 को आईईडी धमाका कर सीआरपीएफ़ की बस को उड़ा दिया जिसमें 40 सैनिक शहीद हो गये।

रियासी हमला : रियासी में 09 जून, 2024 को शिव खोदी से लौट रहे नौ श्रद्धालुओं की हत्या।

उधमपुर हमला : उधमपुर में 16 सितंबर, 2015 को बीएसएफ क़ाफ़िले पर हमले में दो जवान शहीद।

कठुआ हमला : कठुआ में 8 जुलाई, 2024 को जवान शहीद।

डोडा हमला : डोडा में 16 जुलाई, 2024 को 5 जवान शहीद।

गुलमर्ग हमला : गुलमर्ग में 24 अक्टूबर, 2024 को 2 जवान, दो पोर्टर की हत्या।

गान्धरवाल हमला : श्रीनगर के गान्धरवाल में 20 अक्टूबर, 2024 को सात मजदूरों की हत्या।

पहलगाम हमला : 22 अप्रैल, 2025 में पर्यटकों सहित 26 लोगों की हत्या।

भारत ने उठाये ये क़दम

  1. सिंधु जल संधि निलंबित

2- पाकिस्तान का जल प्रवाह नियंत्रित करने की योजना

3- पाकिस्तान नागरिकों का वीजा रद्द

    4- पाकिस्तानी सैन्य सलाहकारों को भारत छोड़ने के निर्देश

    5- अटारी सीमा चौकी बंद

पाकिस्तान ने उठाये ये क़दम

  1.  शिमला समझौता रद्द
  2.  द्विपक्षीय समझौते स्थगित
  3.  वाघा बॉर्डर बंद करने का ऐलान
  4.  भारत के लिए एयरस्पेस बंद करने का फ़ैसला

क्या भारत करेगा हमला?

पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत के तेवर देखते हुए पाकिस्तान ने पाक अधिकृत कश्मीर (पीओके) में आपात स्थिति मानते हुए वहाँ स्वास्थ्य कर्मियों की छुट्टियों और तबादलों पर तत्काल रोक लगा दी है। सेना को सतर्क रहने के लिए कहा गया है। जानकारों के मुताबिक, भारत आतंकी ठिकानों को निशाना बना सकता है। जैसा उसने 2019 के पुलवामा हमले के बाद किया था। पाकिस्तान सेना प्रमुख आसिम मुनीर, जिन्हें भारत के प्रति आक्रामक सोच रखने वाला जनरल माना जाता है; सेना की तैयारी पर काम कर रहे हैं। यह माना जाता है कि भारत में होने वाले आतंकी हमलों के पीछे सेना और आईएसआई का हाथ होता है, जबकि निर्वाचित सरकार को इसके बार इसकी जानकारी दी ही नहीं जाती। घटना के बाद भारत की प्रतिक्रिया का जवाब देने के लिए सरकार को बाध्य कर दिया जाता है। फ़िलहाल भारत की तरफ़ से कोई संकेत नहीं दिये गये हैं, सिवाय भाषणों में कड़ी कार्रवाई की बात कहने के। हाँ, सेना को तैयार रखा गया है और यह निश्चित है कि भारत, चाहे सीमित ही; सर्जिकल स्ट्राइक जैसी कार्रवाई ज़रूर करेगा। सीमा पर जिस तरह तनाव बना है और पाकिस्तान सीजफायर का उल्लंघन कर रहा है, उससे स्थिति गंभीर हुई है। ऊपर से चीन ने पाकिस्तान को सैन्य-हथियार देने की घोषणा करके तनाव को और बढ़ा दिया है।

—ट्विट—-

”पहलगाम की घटना ने देशवासियों को पीड़ा पहुँचायी है। लोग पीड़ित परिजनों के दर्द को महसूस कर सकते हैं। हर भारतीय का ख़ून आतंक की तस्वीरों को देखकर खौल रहा है। ऐसे समय में जब कश्मीर में शान्ति लौट रही थी और लोकतंत्र मज़बूत हो रहा था। पर्यटकों की संख्या में अभूतपूर्व बढ़ोतरी हो रही थी और लोगों की कमायी बढ़ रही थी; लेकिन देश के दुश्मनों को और जम्मू-कश्मीर के दुश्मनों को ये रास नहीं आया। आतंकी चाहते हैं कि कश्मीर फिर से तबाह हो जाए। इस मुश्किल वक़्त में 140 करोड़ देशवासियों की एकता सबसे बड़ा आधार है।’’

       – प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (मन की बात में)

”यह एक दु:खद घटना है। जम्मू-कश्मीर के सभी लोगों ने इस आतंकी हमले की निंदा की है। इस परिस्थिति में कश्मीर के लोग पूर्ण रूप से भारत के साथ हैं। मैं सभी को कहना चाहता हूँ कि आज सारा देश एक साथ खड़ा है। जो कुछ हुआ है, उसके पीछे समाज को बाँटने, भाई को भाई से लड़ाने का विचार है। सरकार को सख़्त क़दम उठाने चाहिए।’’’

      – राहुल गाँधी, नेता प्रतिपक्ष (श्रीनगर में)

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